Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ कवि शिरोमणि सूर ने जल भर के ठिठक-ठिठक कर चलती, अपने नेत्रों को मटकाती, अपने मुख को डुलाती, अपनी बंकिम भौंहों को चलाती हुई गोपियों के विविध हाव-भावों का अप्रतिम वर्णन किया है। सूर ने गोपियों की चाल को मदमस्त हथिनियों की उपमा दी है तथा कृष्ण को गजपति के रूप में चित्रित किया है। ऐसा भावपूर्ण चित्रण अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। यद्यपि गोपियाँ कृष्ण के इस धृष्टतायुक्त कृत्य से परेशान हैं परन्तु उनके अन्तर्गत माधुर्य का स्रोत भी छिपा हुआ है। श्री कृष्ण की इस पनघट लीला में दो प्रसंग उल्लेखनीय हैं। एक प्रसंग में गोपियाँ कृष्ण की उद्दण्डता की शिकायत करने के लिए यशोदा के पास जाती हैं। यशोदा उन्हें समझा-बुझाकर घर लौटाती हैं। कृष्ण को भी डर होता है कि आज मेरी शिकायत अवश्य होगी, वे सकुचाते घर लौट रहे होते हैं कि गोपियाँ उन्हें घर से बाहर ही मिल जाती हैं। कृष्ण अपने शिकायत के प्रत्युत्तर के लिए बड़ी चतुरता के साथ माँ यशोदा से कहते हैं कि हे माँ! तू मुझे ही डाँटना तथा मारना जानती है। उन सब की शरारतों को नहीं समझती। वे मुझे ही बुलाती हैं तथा अनेक बातें गढ़-गढ़ कर तुझे भी कुछ कह कर चली जाती हैं और तू मान लेती है। उनके मटकने से उनकी गागर गिर गयी। इसमें मेरा क्या दोष? कृष्ण की ऐसी बातें सुनकर माँ का क्रोध दूर हो जाता है। तब वह यह कहती है कि गोपियाँ झूठी बातें बनाकर मेरे तनक से कन्हैया पर दोष लगाती हैं परन्तु वे सब यौवन-मद की मतवारी हैं। चतुर कृष्ण द्वारा माँ को गोपियों के दोष का चित्रण सूर के इस पद में देखिये तू मोही कौं मारन जानति उनके चरित कहा कोउ जाने, उनहिँ कही तू मानति। कदम-तीर तै मोहि बुलायौ गढ़ि-गढ़ि बातै बानति। मटकत गिरि गागरी सिर तैं, अब ऐसी बुधि ठानति। सूर सुतहि देखत ही रिसगई, मुख चूमति उर आनति।६६ दूसरे प्रसंग में एक गोपिका यमुना तट पर जल भरने गई। श्री कृष्ण वृक्ष की ओट में छिप गये। जैसे ही वह युवती गागर भर के घर की ओर चलने लगी, कृष्ण ने उसकी गागर को ढरका दिया। गोपिका भी अत्यन्त चतुर निकली, उसने कृष्ण की कनक लकुटी को छिन लिया। वह कहने लगी, जब तक यह घड़ा तुम मुझे यमुना जल से भरकर नहीं दोंगे, मैं यह लकुटी नहीं दूंगी। कृष्ण अनुनय करने लगे कि, मैं तुम्हें जल भर दे दूँगा पर तू मेरी लकुटी वापस कर। अन्त में कृष्ण उसे उस दिन की बात याद कराके लकुटी देने पर विवश करते हैं जिस दिन उन्होंने सबके चीर हर लिये थे। यह बात सुनते ही गोपिका भावमग्न हो जाती है, उसके हाथ से लकुटी कब छूट पड़ती है, उसे कुछ पता नहीं। % 3D