Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ पूर्वभव में इन देवियों को प्रसन्न किया था। उस समय उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर कंस को समय पर सहायता का वचन दिया था। इनमें से ही एक देवी पूतना के स्वरूप में बालकृष्ण को मारने आई थी। कुपुतना पूतनभूतमूर्तिः प्रपाययन्ती सविषस्तनौ तम्। स देवताधिष्ठितनिष्ठरास्यो व्यरीरटच्चूचुकचूषणेन॥७३५-४२ समीक्षा : पूतना वध-प्रसंग में सूरदास श्री कृष्ण को भगवान् का अवतार स्वीकार करते हैं लेकिन जिनसेनाचार्य ने उन्हें देवताओं के अधिष्ठित स्वरूप में निरूपित किया है। सूर का यह वर्णन अत्यन्त रोचकता को प्राप्त कर गया है जबकि जिनसेनाचार्य में इसका अभाव रहा है लेकिन इनका कथा-प्रवाह प्रशंसनीय रहा है। पूतना का प्रतीकात्मक स्वरूप : कृष्णोपनिषद् के अनुसार पूतना को दैत्य या अविद्या का प्रतीक माना गया है। अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष आदि पाँच पर्व कहे गये हैं। पूतना का वध पाँच पर्यों से समृद्ध अविद्या का विनाश है। श्री कृष्ण (वेद या ज्ञान) द्वारा अविद्या रूपी पूतना का विनाश किया जाता है।८ "पूतना को वासना का प्रतीक भी माना जाता है। जब हमारी इन्द्रियाँ बहिर्मुख होती हैं विषयों में जाती हैं तब वासना का आगमन होता है। वासना जीवन के लिए विष का काम करती है। इस वासना को वशीभूत करना, उससे उपराम बनना कृष्ण जैसे देवोपम बनने के लिए नितान्त आवश्यक है।"१९ (ख) कागासुर वध : बालकृष्ण की अलौकिक लीलाओं में एक प्रसंग कागासुर वध का आता है जिसे दोनों कृतिकारों ने कुछ विषमता के साथ चित्रित किया है। श्रीमद्भागवत में यह कथा नहीं है परन्तु ब्रह्मपुराण तथा विष्णुपुराण में इसका वर्णन है। सूरदास ने इस कथा का सांगोपांग वर्णन किया है। उन्होंने काग को भी अन्य असुरों की भाँति कंस से प्रेरित बताया है। ___बालकृष्ण को मारने के लिए कंस एक राक्षस को भेजता है जो पक्षी का स्वरूप धारण कर कृष्ण को मारने का प्रयास करता है। परन्तु कृष्ण द्वारा वह भी मारा जाता है। काग रूप धारी उस असुर को कृष्ण पालना में लेटे ही चोंच पकड़ कर फैंक देते हैं जो बेहाल होकर कंस के पास जाकर गिरता है। काग-रूप इक दनुज धरयौ। प आयुस लै धरि माथे पर, हरषवत उर गरब भरयौ।