Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ इस प्रकार सभा संस्करण सूरसागर के समस्त संस्करणों में निःसन्देह उत्तम तथा अपेक्षाकृत सर्वाधिक प्रामाणिक है। निष्कर्ष :- . उपर्युक्त परिच्छेद के विवेचनानुसार हरिवंशपुराणकार जिनसेन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में प्राप्त सामग्री का अभाव रहा है। उनकी एक मात्र रचना "हरिवंशपुराण" की जानकारी तथा उनके गुरु एवं संघ का नाम ज्ञात हुआ है। उनके जन्म स्थान, माता-पिता वंश, शिक्षा-दीक्षा तथा "हरिवंश" के अलावा अन्य कृतियों की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है अतः जैन साहित्य के इतिहासों में उपलब्ध सामग्री से उनका व्यक्तित्व-कृतित्व देखने का प्रयास किया गया है। "सूरदास" के सम्बन्ध में तो अनेक विद्वानों ने अनेकानेक अनुसंधात्मक कार्य किये हैं। इन विद्वानों द्वारा विवेचित साहित्य के आधार पर हमने सूर के व्यक्तित्व का पुनर्मूल्यांकन करने का तटस्थ प्रयास किया है। टिप्पणियाँ :- . 1. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - प्रस्तावना डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल - पृ० 5 2. . हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - प्रस्तावना - डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल 3. सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च। वंशानुचरितं चैव पुराणं पंच लक्षणम्॥ (वि०पु०) पुराण विमर्श - बलदेव उपाध्याय - पृ० 127 पुराण विमर्श - बलदव उ" * 4. जैन साहित्य का इतिहास - पं० नाथूराम प्रेमी - पृ० 114 5. जैन साहित्य का इतिहास - पं० नाथूराम प्रेमी - पृ० 114 / 6. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 24 7. जैन साहित्य का इतिहास - पं० नाथूराम प्रेमी - पृ० 113 8. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 18 9. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 19-20 10. हरिवंशपुराण - सम्पादक - पन्नालाल जैन - पृ० 810 11. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 20 12. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 18 13. . डॉ० हीरालाल जी ने अपने लेख (इण्डियन कल्चर, अप्रैल - 1946) धार राज्य के बदनावर स्थान को वर्धमानपुर का अनुमान किया है। क्योंकि वदनावर में वर्धमान पुरान्वय मुनियों के 2