Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ प्रसिद्ध रहा है। डॉ० दीनदयाल गुप्त ने कई पुस्तकों में उल्लेखित शाही दरबार में आने जाने वाले सूरदास इन्हीं को माना है। (4) भक्त शिरोमणि महाकवि सूरदास : वल्लभाचार्य शिष्य, अष्टछाप कवियों में सर्वप्रमुख भक्त शिरोमणि सूरदास उपयुक्त तीनों सूरदास से सर्वथा भिन्न हैं। भक्तमाल के वर्णन में भी इनको सर्वमान्य, सर्वोपरि महात्म्य युक्त प्रतिपादित किया है। यही सूरदास अपनी कृष्ण-लीलाओं की प्रसिद्ध कृति सूरसागर के लिए प्रख्यात रहे हैं तथा विश्वकवि का सम्मान अर्जित किया है। इन्हीं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का हमें विवेचन करना है। सूरदास : वंश-परिचय : "भट्ट ब्राह्मण" सूरदास के वंश परिचय से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री का अभाव है। "साहित्य लहरी" में पद संख्या 118 के आधार पर कई विद्वानों ने इन्हें ब्राह्मण माना है तथा हिन्दी के आदि कवि चन्दवरदाई का वंशधर साबित किया है। इस पद के आधार पर इनकी वंशावली भी प्रस्तुत की गई है। जिसका डॉ० मुंशीराम शर्मा, डॉ० बड़थ्वाल, सरजार्ज ग्रियर्सन, मुंशी देवीण्माद तथा राधाकृष्णदास विद्वानों ने समर्थन किया है। __परन्तु सूर साहित्य पर अनुसंधान करने वाले अनेक विद्वानों ने इस वंशावली की प्रामाणिकता पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया है। डॉ. दीनदयाल गुप्त के अनुसार-"ज्ञात होता है कि यह पद सरदार कवि तथा भारतेन्दु से भी पहले किसी ने साहित्य-लहरी में मिला दिया है।" इस प्रकार इस पद को प्रक्षिप्त मान कर इसे प्रामाणिक पद के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। मिश्रबन्धुओं ने उक्त पद को प्रक्षिप्त सिद्ध करने के लिए अनेक सचोट तर्क प्रस्तुत किये तथा "सूरनिर्णय" के लेखकद्वय प्रभुदयाल मित्तल तथा द्वारिकाप्रसाद पारीख ने भी इस मत में अपनी सहमति प्रकट की है। इस प्रकार से सूरदास को भट्ट ब्राह्मण या राव मानना, यह मत ग्राह्य नहीं है। अगर इस मत में कुछ भी सारतत्त्व होता तो अन्य कई ग्रन्थों में "चौरासी वैष्णव की वार्ता" या "भावप्रकाश" में इसका अवश्य ही उल्लेख होता। यह पद अवश्य प्रक्षिप्त है। अतः सूरदास को भट्टब्राह्मण कहना असंगत है। सूर सारस्वत ब्राह्मण : हरिराय कृत भावप्रकाश में जो चौरासी वैष्णव की वार्ता के आधार पर लिखा गया है, सूर को सारस्वत ब्राह्मण बताया गया है। सारस्वत शब्द का नामकरण "सरस्वती" के आधार पर हुआ है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में सरस्वती नदी पांचाल देश में बहती हुई गंगा में मिलती थी। उसके आसपास रहने वाले ब्राह्मण सारस्वत कहलाते थे। -