Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ सिद्धान्त के अनुसार भी स्वप्न में भी हम उन्हीं वस्तुओं को देख सकते हैं, जिन्हें कभी किसी न किसी रूप में देखा गया हो। अतः सूरदास जन्मान्ध होकर ऐसा वर्णन नहीं कर सकते हैं। सर के पदों में जो "जन्म को आँधरो" शब्द प्रयुक्त हुआ है, उसमें जन्म शब्द का लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण करना श्रेयस्कर है। 'जन्म को आँधरो' से मतलब यह है कि सूरदास का जीवन ही अन्धे होकर बीत गया। सूरदास के द्वारा जन्म शब्द जीवन या जिन्दगी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ प्रतीत होता है। इन्हें ये विद्वान् जन्मान्धता के साक्ष्य के रूप में ग्रहण करना समुचित नहीं समझते हैं। इस सम्बन्ध में मिश्र बन्धुओं का मन्तव्य उल्लेखनीय है कि "हमें तो इनके जन्मान्ध होने पर विश्वास नहीं होता। सूरदास ने अपनी कविता में ज्योति के रंगों और अनेकानेक हाव-भावों के ऐसे-ऐसे मनोरम वर्णन किए हैं तथा उपमाएँ ऐसी चुभती दी हैं, जिनसे यह किसी प्रकार निश्चय नहीं होता कि कोई व्यक्ति बिना आँखों देखे केवल श्रवण द्वारा प्राप्त ज्ञान से ऐसा वर्णन कर सकता है।"४५ डॉ० श्यामसुन्दरदास ने जन्मान्धता को अस्वीकार करते हुए लिखा है कि "सर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे क्योंकि शृंगार तथा रंग रूप आदि का जो वर्णन उन्होंने किया है, वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।" डॉ० बेनीप्रसाद का मत भी इस मत का समर्थन है-"प्राकृतिक दृश्य का अनुपम चित्रण किसी प्रकार यह नहीं मानने देता कि वे जन्म से ही अन्धे थे।"४६ इस प्रकार सूर के अन्धत्व के सम्बन्ध में तो सभी विद्वान् एक मत हैं परन्तु जन्मान्धता के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है परन्तु डॉ० दीनदयाल गुप्त का यह मत कि-"सूर बाल्यावस्था में अन्धे हो गये थे, सर्वथा युक्ति-संगत तथा तर्क पूर्ण प्रतीत होता है।" सूरदास का बचपन : उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष मिलता है कि सूर सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनका जन्म संवत् 1535 विक्रमी में हुआ था। सूर का जन्म स्थान वल्लभगढ़ के निकट "सीही" नामक है तथा बाल्यावस्था में ही शीतला रोग या किसी अन्य कारण से उनकी आँखें जाती रहीं। सूरदास की बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि थी। इस सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। उनकी अन्तः प्रज्ञा के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि इन्होंने अपनी इसी शक्ति के बल पर कुछ लोगों की गुमी हुई वस्तुओं का पता बता दिया था। इन्होंने गान-विद्या भी प्रारम्भ से प्राप्त कर ली थी तथा इसकी निपुणता से ही इनको जल्दी ही प्रसिद्धि मिल गई थी।