Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ निःसन्देह सूर के महाप्रयाण का वर्णन अत्यन्त सजीवता तथा मार्मिकता के साथ वर्णित मिलता है। परन्तु, त्रुटि केवल इतनी है कि इसमें देहावसान के संवत् का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। यही कारण है कि सूरदास के देहावसान निर्धारण में विद्वानों में मतभेद है। मिश्रबन्धु और आचार्य शुक्ल ने इनके देहावसान का संवत् 1620, डॉ० रामकुमार वर्मा 1624, डॉ० मुंशीराम शर्मा 1628, डॉ० दीनदयाल गुप्त 1638-39, हरवंशलाल शर्मा तथा सूरनिर्णयकार 1640 मानते हैं। इस सम्बन्ध में थोड़ा विचार करें तो ज्ञात होता है कि अन्तः साक्ष्य तथा बाह्य-साक्ष्य दोनों में सूर के दीर्घायु होने का उल्लेख मिलता है। मूल-वार्ता के उपर्युक्त विवरण पर भी विचार करें तो पुष्टिमार्ग का जहाज और पुष्टिमार्ग के स्वरूप की व्याख्या का अधिकारी भी कोई वयोवृद्ध ही हो सकता है। सूरसागर में भी ऐसे अनेक पद मिलते हैं जिसमें सूर के दीर्घायु होने का प्रमाण है विनती करत मरत हौ लाज नख-सिख लौ मेरी यह देही हैं पाप की जहाज। तीनों पग भरि ओर निबाघ्यों तऊ न आयो बाज॥ इस पद में इन्होंने अपने बाल्यावस्था, युवावस्था तथा वृद्धावस्था का स्पष्ट उल्लेख किया है जिससे इनकी लम्बी आयु स्पष्ट सिद्ध होती है। इसी तरह एक पद और द्रष्टव्य है सब दिन गए विषय के हेत तीनौ पग ऐसे हो खोए, केस भए सिर सेत। आँखिनि अंध, स्रवन नहीं सुनियत थाके चरन समेत॥५६ इसमें भी वृद्धावस्था की चरम सीमा का वर्णन दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा भी भनेक पद इस तरह के मिलते हैं। - यह तो निश्चित है कि सूर के देहावसान के समय गोसाईंजी विठ्ठलनाथ जीवित थे। गोसाईं विठ्ठलनाथजी का तिरोधान संवत् 1642 को हुआ था। इसी आधार पर अधिकांश विद्वान् सूर का देहावसान संवत् 1640 मानते हैं जो ज्यादा समुचित है क्योंकि दीर्घायु के हिसाब से भी उस समय उनकी आयु एक सौ पाँच वर्षों की हो गई थी। - सूर-निर्णयकारों ने लिखा है कि "गोसाईं विठ्ठलनाथजी के निधन से कुछ समर पूर्व ही सूरदास का देहावसान हुआ होगा। गोसाईंजी का निधन सं० 1642 निश्चित है अतः सूरदास का देहावसान संवत् 1640 के लगभग सिद्ध होता है। "57 - उपर्युक्त विवेचना के आधार पर सूरदास के जीवन का घटनाक्रम संक्षेप में निः प्रकार से है -