Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ डॉ० रामकुमार वर्मा ने महाप्रभु चैतन्य के बारे में लिखा है कि "यदि रामानुजाचार्य से प्रभावित होकर उनके अनुयायी रामानन्द ने विष्णु और नारायण का रूपान्तरण कर रामभक्ति का प्रचार किया तो निम्बार्काचार्य, माध्वाचार्य तथा विष्णुस्वामी के आदर्शों को सामने रखकर उनके अनुयायी चैतन्य एवं वल्लभाचार्य ने श्री कृष्ण की भक्ति का प्रचार किया। यह भक्ति भागवत-पुराण से ली गई है। इसमें ज्ञान की अपेक्षा प्रेम का ही अधिक महत्त्व है। आत्म-चिंतन की अपेक्षा आत्मसमर्पण की भावना का प्राधान्य है।१७५ चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन-तन्मयता प्रसिद्ध है। इस सम्प्रदाय को द्वैताद्वैत मत मान्य था, जिसके अनुसार कृष्ण के दो रूप हैं-सगुण एवं निर्गुण। इनके एकमात्र आराध्य श्री कृष्ण नराकृति लीलामय पुरुषोत्तम एवं माधुर्य-मण्डित हैं। इस सम्प्रदाय की आदिवाणी, गीत-गोविन्द-भाषा आदि प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। . कृष्ण भक्ति शाखा में "वल्लभाचार्य" का स्थान मूर्धन्य माना जाता है / वे तेलुगुप्रदेश के एवं विष्णुस्वामी के मतावलम्बी लक्ष्मण भट्ट के पुत्र थे। इनका जीवन संवत् 1409 से 1530 तक माना जाता है। इन्होंने अपने सम्प्रदाय का केन्द्र स्थल गोवर्धन स्थित श्री नाथजी के मन्दिर में स्थापित किया, जिसका निर्माण वल्लभाचार्य के भक्त पूरनमल खत्री ने सन् 1514 में किया था। इस सम्प्रदाय के दार्शनिक सिद्धान्त को "पुष्टिमार्ग". के नाम से जाना जाता है। यही पुष्टिमार्ग हिन्दी के कृष्ण भक्त कवियों का मूलाधार रहा है। इसमें माधुर्यभाव पर विशेष बल दिया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार श्री कृष्ण के बाल किशोर रूप की माधुर्यभाव की उपासना ही सर्वश्रेष्ठ है। माधुर्यभाव प्रधान होने के कारण इनकी भक्ति भी माधुरी भक्ति कहलाती है। इसमें भगवान् के अनुग्रह की प्राप्ति ही मुख्य है एवं बालकृष्ण की लीला में भाग लेना भक्त का सर्वस्व है। इस भक्ति का पूर्ण परिपाक राधाकृष्ण और गोपियों के प्रेम से ही होता है। . वल्लभाचार्य ने मुक्ति के दो मार्ग माने हैं—एक ज्ञान मार्ग और दूसरा साधना मार्ग। जिसे मर्यादा मार्ग कहा है, वह पहले प्रकार का है तथा दूसरा अनुग्रह का मार्ग है, जिसे पुष्टि मार्ग कहा है। यह मार्ग मर्यादा मार्ग से श्रेष्ठ है। इसके अनुसार भक्ति और अनुग्रह द्वारा प्राप्त मुक्ति ही मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। इस मार्ग द्वारा मुक्ति प्राप्त करने से जीवात्मा परमात्मा के सन्निकट गोलोक में पहुँच जाती है तथा उसकी लीला में भाग लेने लगती है। डॉ० दयानन्द श्रीवास्तव ने पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों को संक्षेप में इस प्रकार से प्रस्तुत किया है :(1) भक्ति के लिए भगवान् का अनुग्रह अनिवार्य है। (2) भक्ति ही मुक्ति का एकमात्र साधन है। (3) राधा कृष्ण की आत्मशक्ति है।