Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ रसखान ने श्री कृष्ण को आलम्बन बना कर श्रृंगार रस का प्रमुख रूप से प्रतिपादन किया है। इनके अत्यन्त ही स्वाभाविक चित्रण मिलते हैं। माधुर्य एवं प्रसाद गुणों से इनका काव्य अत्यन्त सरस बन गया है। विभिन्न लाक्षणिक प्रयोगों के कारण काव्य में चुटीलापन आ गया है। भक्तिकाल के विभिन्न सम्प्रदाय से सम्बन्धित एवं सम्प्रदाय निरपेक्ष कृष्णोपासक भक्त-कवियों की परम्परा अब यहीं समाप्त की जाती है। पर इसका अभिप्राय यह नहीं कि ऐसे भक्त कवि और नहीं थे। ऐसे अनेक भक्त कवि हुए हैं, जिनकी रचनाओं में प्रेम-माधुर्य का सुधा-स्रोत बहा है, परन्तु उन सब का उल्लेख यहाँ सम्भव नहीं है। . रीतिकाल में कृष्ण काव्य : __ भक्तिकाल में जिस कृष्ण भक्ति काव्यधारा का उद्भव और विकास हुआ, वह शृंगारकाल या रीतिकाल में चलती रही। इस समय अनेक सम्प्रदायों के अन्तर्गत कृष्ण काव्य की रचनाएँ होती रही परन्तु इन सम्प्रदायों के कवियों ने तत्कालीन रीति-नीति के अनुसार राधाकृष्ण का निरूपण किया। इनके काव्य पर तयुगीन परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ा है। ___ इसी कारण भक्तिकालीन आध्यात्मिकता, भौतिकता का रूप ले बैठी तथा सूक्ष्मता के स्थान पर स्थूलता एवं नग्नता आई। इस युग में माधुर्य-भाव की भक्ति कृष्ण और राधा के नामों की आड़ में मानवी श्रृंगार में परिवर्तित होकर प्रवाहित होने लगी। डॉ० नगेन्द्र के मतानुसार "जीवन की अतिशय रसिकता से घबराने वाले धर्मभीरु रीति कवियों को राधा-कृष्ण का अनुराग आश्वासन देता है। सूरदास जैसे भक्त कवियों ने कृष्ण-भक्ति के जिस विशाल पट को अपने हृदय की शुद्ध-भक्ति के रस से सींचा था। अब उसे अनधिकारी पात्र मलिन हृदय की कलुषित काम-भावना के पंकिल जल से सींचने लगे। उन्होंने राधा-कृष्ण को भक्ति का आलम्बन न मानकर बाह्य विलास के निरूपण में लोकप्रिय नायक-नायिका के रूप में चिनिन किया है।" आगे के सुकवि रीझे हैं तो कविताई। न तु राधिका कन्हाई सुमिरन को बहानो है। इस काल के कवियों ने कृष्ण भक्ति के सम्बन्ध में दो प्रकार के काव्यों की सृष्टि की है—प्रबन्धात्मक एवं मुक्तक। इन दोनों प्रकारों के काव्यों में मूलतः शृंगार भावना ही है जो राधा-कृष्ण के आवरण में आवृत्त है। इस काल के अनेक कवि भक्तिकालीन कृष्ण-परम्परा में आते हैं, जिन्होंने विशुद्ध रूप से श्री कृष्ण की लीलाओं का निरूपण किया है। पंडित रामचन्द्र शुक्ल ने इन कवियों के बारे में लिखा है कि "यदि इस काल के सब ग्रन्थों का अच्छा सम्पादन तथा प्रकाशन किया जाए तो संभावना है कि भक्तिकाल से भी अधिक और महत्त्व में भक्तिकाल की कविता के समान भक्ति की और कविता प्रकाश में आ सकती है।"१०२