Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ आपके देशभक्ति, जन्माभिषेक, तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थसिद्धि) समाधितन्त्र, ईष्टोपदेश, जैनेन्द्र व्याकरण, सिद्धिप्रियस्तोत्र ये सात ग्रन्थ उपलब्ध हो सके हैं। (4) वज्रसूरि : पं० नाथूराम प्रेमी के अनुसार ये देवनन्दि या पूज्यपाद के शिष्य थे।२५ जिनसेन ने इनके विचारों को प्रवक्ताओं या गणधर-देवों के समान प्रमाणभूत बतलाया है और उनके किसी ऐसे ग्रन्थ की ओर संकेत किया है जिसमें बन्ध तथा मोक्ष का सहेतुक विवेचन किया गया है। "दर्शनसार" के उल्लेखानुसार आप छठी शती के प्रारम्भ के विद्वान् ठहरते (5) महासेन : जिनसेनाचार्य ने आपको "सुलोचनाकथा" का कर्ता बतलाया है। इनके बारे में विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। (6) रविषेण : जैन पौराणिक कथा-ग्रन्थों के रचयिताओं में रविषेणाचार्य का नाम भी प्रसिद्ध रहा है। इन्हें सारस्वताचार्यों में गिना जाता है। ये सेनसंघ या गणगच्छ के थे। इन्होंने अपने पौराणिक ग्रन्थ पद्मपुराण की समाप्ति में निर्देश किया है कि "भगवान् महावीर के निर्वाण प्राप्त करने के 1203 वर्ष 6 माह पश्चात् पद्ममुनि का यह चरित निबद्ध किया। इससे इनकी यह रचना संवत् (ई०सं० 677) में पूर्ण हुई थी। वीर निर्वाण संवत् कार्तिक कृष्ण अमावस्या संवत् 469 पूर्व से ही भगवान् महावीर के मोक्ष जाने की परम्परा प्रचलित है। इस प्रकार छः माह का समय और जोड़ने पर वैशाख शुक्ल पक्ष विक्रम संवत् 734 रचना तिथि आती है।"२६ (7) जटासिंहनन्दि :__जैन पौराणिक काव्य के निर्माताओं में जटाचार्य का नाम भी प्रसिद्ध है। जिनसेन, उद्योतनसूरि आदि प्राचीन आचार्यों ने जटासिंह नन्दि की प्रशंसा की है। जिनसेन ने इनका नामोल्लेख न कर इनकें "वरांगचरित" का उल्लेख किया है। इनका समाधिमरण "कोप्पण" में हुआ था। "कोप्पण" के समीप "पल्लव की गुण्डु" नामक पहाड़ी पर इनके चरण चिह्न भी अंकित हैं और उनके नीचे दो पंक्तियों का पुरानी कन्नड़ भाषा का एक लेख भी उत्कीर्ण है। जिसे "चाप्यय" नाम के व्यक्ति ने तैयार कराया था। इनकी एक मात्र कृति "वरांगचरित" डॉ० ए०एस० उपाध्याय द्वारा सम्पादित होकर माणिक्यचन्द्र ग्रन्थ माला बम्बई से प्रकाशित हो चुकी है। उपाध्यायजी ने जटासिंह नन्दि का समय 7 वीं शती 'निश्चित किया है।