Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ आचार्य विमलसूरि रचित 'पउमचरियम्' पद्य चरित्र का आधार कवि ने लिया है। यदि ऐसा है तो हरिवंशपुराण का मूलाधार एवं जिनसेन की अनुभूति का स्रोत विमलसूरि का ग्रन्थ पउमचरियं रहा होगा। ___ हरिवंशपुराण का लोकविभाग एवं शलाकापुरुषों का वर्णन त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति से मेल खाता है।३५ हरिवंश का राजनैतिक वर्णन "द्वादशांग" के अनुरूप है। संगीत का वर्णन भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से अनुप्रकर्णित है तथा दर्शन एवं तत्त्वों का वर्णन सर्वार्थ-सिद्धि तथा तत्वार्थसूत्र के अनुकूल है। कालिदास इत्यादि कवियों का प्रभाव भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होता है। इससे ज्ञात होता है कि आचार्य जिनसेन ने इन सब ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन तथा मनन किया था, जिससे इनका स्पष्ट प्रभाव हरिवंशपुराण पर पर्याप्त रूप से पड़ा है। जिनसेनाचार्य की प्रामाणिक कृति हरिवंशपुराण :___ आचार्य जिनसेन की ख्याति का आधार उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ हरिवंशपुराण है। यह एक पौराणिक कथा ग्रन्थ है जिसका जैन साहित्य में मूर्धन्य स्थान है। इस ग्रन्थ में जिनसेनाचार्य ने हरिवंश की एक शाखा यादवकुल में उत्पन्न तीन शलाकापुरुषों श्री कृष्ण, बलदेव एवं अरिष्टनेमि का चरित चित्रण किया है। जैन परम्परानुसार श्री कृष्ण चरित्र का क्रमबद्ध रूप से चित्रण करने वाला यह प्रथम काव्य ग्रन्थ हे / वैसे तो कृष्ण चरित्र वैदिक साहित्य से लगाकर आधुनिक युग तक अनेक काव्य ग्रन्थों में वर्णित किया गया है परन्तु जैनों की मान्यता आगम काल से भिन्न दिखाई देती है। उनके आगम एवं आगमेतर साहित्य में इस चरित्र का वर्णन बहुतायत के साथ किया गया है। . हरिवंशपुराण के कृष्ण न तो भगवान् है तथा न ही वे भगवान् के अवतार हैं परन्तु वे विशिष्ट अतिशयों से सम्पन्न शलाकापुरुष हैं। ये शलाकापुरुष कालक्रमानुसार जन्म धारण करते रहते हैं। परम्परानुसार एक कालखण्ड में त्रिषष्टि शलाकापुरुष होते हैं। श्री कृष्ण इन्हीं शलाकापुरुषों में से "नौवें नारायण" हैं। जिनसेनाचार्य ने अपने ग्रन्थ में श्री कृष्ण एवं जैनधर्म के बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का चित्रण करते हुए अन्य अनेक प्रसंगोपात कथानकों का सुन्दर गुम्फन किया है। यह एक विशालकाय पौराणिक कृति है। इसमें कृष्ण-चरित्र को विस्तृत रूप से निरूपित करते हुए आचार्य जिनसेन ने कृष्ण-जन्म की भविष्यवाणी, श्री कृष्ण का जन्म, पूतना-वध, चाणूर तथा मुष्टिक-वध, श्री कृष्ण द्वारा कंस को मारना, जरासंध-वध, शिशुपाल-वध, श्री कृष्ण के विवाह, उनके पुत्र, उनका वैभवशाली राज्य तथा श्री कृष्ण का परमधामगमन के समस्त वृत्तान्तों का सुन्दर ढंग से निरूपण किया है। नेमिनाथ चरित्र वर्णन में उनका पैतृक वंश, नेमिनाथ का अलौकिक-बल, कौरवों-पाण्डवों के युद्ध में नेमिनाथ की भूमिका, उनकी आध्यात्मिकता, तप एवं कैवल्यज्ञान इत्यादि का चित्रण मिलता है। इसके अलावा प्रद्युम्न-चरित्र तथा पाण्डव-चरित्र का भी कवि ने यथाप्रसंग सुन्दर समावेश दिखाया है।