Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ (1) इन्द्रायुध : प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने लिखा है कि इन्द्रायुध एवं चक्रायुध किस वंश के थे, यह ज्ञात नहीं हुआ, परन्तु सम्भव है कि वे राठौड़ हों। . लेकिन स्व० चिन्तामणि विनायक वैद्य ने इन्हें मण्डिकुल का कहा है। इस मण्डिकुल को वर्मवंश भी कहा जाता है। इसी इन्द्रायुध के पुत्र चक्रायुध से प्रतिहारवंशी राजा वत्सराज के पुत्र नागभट्ट दूसरे ने विक्रम संवत् 857 में कन्नौज का राज्य छिना था। हरिवंशपुराण के अनुसार इन्द्रायुध वढ़वाण से उत्तर की ओर था। बढ़वाण के उत्तर में मारवाड़ प्रदेश पड़ता है अर्थात् इन्द्रायुध का साम्राज्य मारवाड़ से लेकर कन्नौज तक फैला हुआ विशाल राज्य था। (2) श्रीवल्लभ : यह दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण (प्रथम) का पुत्र था। इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (द्वितीय) था। कावी में मिले ताम्रपत्र५ में इसे गोविन्द न लिखकर "वल्लभ" ही बताया है परन्तु इसमें संदेह नहीं कि यह गोविन्द (द्वितीय) ही था तथा वर्धमानपुर के दक्षिण दिशा में इसका साम्राज्य फैला हुआ था। शक संवत् 692 (वि०सं० 827) का अर्थात् हरिवंश की रचना से 13 वर्ष पहले का इसका "ताम्रपत्र"१६ भी मिला है। (3) अवन्तिभूभृत् वत्सराज : यह प्रतिहार वंश का राजा था और उस नागावलोक या नागभट्ट दूसरे का पिता था जिसने चक्रायुध को परास्त किया था। वत्सराज ने गौड़ तथा बंगाल के राजाओं को भी परास्त किया था और उनके दो श्वेत छत्र छीन लिये थे। आगे इन छत्रों को राष्ट्रकूट गोविन्द (द्वितीय) या श्रीवल्लभ के छोटे भाई ध्रुवराज ने चढ़ाई कर वत्सराज से छीनकर उसे मारवाड़ की तरफ भागने पर मजबूर किया था। ओझाजी ने लिखा है कि उक्त वत्सराज ने मालवे के राजा पर चढ़ाई की और मालवराज को बचाने के लिए लिए ध्रुवराज ने उस पर चढ़ाई कर दी। 705 में तो मालवा वत्सराज के ही अधिकार में था क्योंकि ध्रुवराज का राज्यारोहण काल शक संवत् 707 के आसपास माना जाता है। उसके पहले 705 में तो गोविन्द द्वितीय ही राजा था और इसलिए उसके बाद ही ध्रुवराज ने उक्त आक्रमण किया होगा। "कुवलयमाला' के रचयिता "उद्योत न सूरि" ने जाबालिपुर या जालौर (मारवाड़) में, शक संवत् 700 में जब एक दिन बाकी था उस समय उक्त रचना की समाप्ति की थी। उस समय वहाँ वत्सराज का राज्य था। इस प्रकार "हरिवंश" की रचना के समय तो उत्तरदिशा का मारवाड़ इन्द्रायुध के अधिकार में था तथा पूर्व का मालवा वत्सराज के अधीन था।