Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ हरिवंशपुराण में वर्धमानपुर की भौगोलिक स्थिति तथा उस समय के आसपास के राजाओं का जो वर्णन मिलता है उसके आधार पर हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि वर्धमानपुर को.काठियावाड़ का “वढ़वाण" मानना कहाँ तक न्याय संगत है? जिनसेनाचार्य ने हरिवंशपुराण के अन्तिम सर्ग के 52 व 53 वें श्लोक में वर्धमानपुर का वर्णन करते हुए कहा है कि "सात सौ पाँच शक संवत् में जबकि उत्तर दिशा का इन्द्रायुध, दक्षिण का कृष्णराज का पुत्र श्रीवल्लभ, पूर्वदिशा का श्रीमान् अवन्तिराज तथा पश्चिम का सौरों के अधिमण्डल सौराष्ट्र का वीर जयवराह पालन करता था, तब कल्याणों से निरन्तर बढ़ने वाली लक्ष्मी से युक्त श्री वर्धमानपुर में नन्नराज द्वारा 'र्मित पर्श्वनाथ के मन्दिर में पहले इस हरिवंशपुराण की रचना प्रारम्भ की गई थी परन्तु वहाँ यह पूर्ण नहीं हो सकी। पर्याप्त भाग शेष बचा रहा तब पीछे दोस्तटिका नगरी की प्रजा के द्वारा रचित उत्कृष्ट अर्चन और पूजा-स्तुति से युक्त वहाँ श्री शांतिनाथ भगवान् के शांतिपूर्ण मन्दिर में इसकी रचना पूर्ण हुई।"१० जहाँ तक दोस्तटिका का सवाल है तो वढ़वाण से गिरनार जाते समय जो "दोत्तडि" नामक स्थान आता है, वही हरिवंश में उल्लेखित "दोस्तटिका" प्रतीत होता है। प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह (गायकवाड़ सीरिज) में प्रकाशित अमुलकृत चर्चरिका में एक यात्री ने भी गिरनार यात्रा के प्रसंग में "दोन्तड़ि" को "दोस्तटिका" के नाम से उल्लेखित किया है। यह यात्री सर्वप्रथम "वढ़वाण" पहुँचता है, फिर क्रम से रेनदुलई, सहजिपुर, गंगिलपुर तथा लखमीधरु पहुँचता है। फिर विषम दोताडि पहुँचकर बहुत सी नदियों तथा पहाड़ों को पार करता हुआ "करिवंदियाल" पहुँचता है। वह फिर अनन्तपुर से जाता हुआ झालण में अपनी यात्रा पूर्ण करता है एवं वहाँ से ऊँचा गिरनार पर्वत दिखने लगता है।११ ____ इस प्रसंग से "दोस्तटिका" को काठियावाड़ का दोत्तड़ि मानने में कोई सन्देह नहीं रहता। वैसे पुन्नाट कर्नाटक का पर्याय शब्द है परन्तु जैन मुनियों के विहार प्रिय होने के कारण सौराष्ट्र की ओर आगमन सम्भव है। सिद्धि क्षेत्र के गिरनार पर्वत की वंदना के उद्देश्य से शायद पुन्नाट संघ के मुनियों ने सौराष्ट्र की तरफ प्रयाण किया होगा। जिनसेन ने अपनी गुरु परम्परा में अमितसेन को पुन्नाट संघ का अग्रणी तथा शतवर्षजीवी बताया है। इससे भी यह प्रतीत होता है कि यह संघ अमितसेन के नेतृत्व में ही पुन्नाट प्रदेश छोड़कर सौराष्ट्र की तरफ आया होगा एवं वढ़वाण जैसे तत्कालीन भव्य-शहर में बस गया होगा। . काठियावाड़ के "वढ़वाण" को ही हरिवंशपुराण का रचना स्थल मानने पर उक्त चारों दिशाओं के राजाओं का मेल भी युक्ति-संगत बैठता है, अन्यथा नहीं।१२ - वर्धमानपुर के चारों ओर तत्कालीन राजाओं का विवरण अधोलिखित प्रकार से है - - -