Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ अन्तकृद्दशा : इस ग्रन्थ के वर्ग 1,3,4,5 में कृष्ण एवं उनकी रानियो तथा पुत्रों का वर्णन है। इसी क्रम में द्वारिका के महान् शक्ति सम्पन्न राजा श्री कृष्ण, उनकी सेना, सेनापतिओं, वैभवशाली नागरिकों, सुभट महावीरों अर्हत् अरिष्टनेमि का भी निरूपण है। तृतीय वर्ग के आठवें अध्याय / में कृष्ण के अनुज सहोदर मुनि गजसुकुमार के चरित्र का भी चित्रण हुआ है। (4) प्रश्न-व्याकरण : इस कृति की विषयवस्तु दो भागों (आस्रव तथा संवर) में विभाजित है। इसमें आस्रवद्धार के चतुर्थ अध्ययन में श्री कृष्ण-चरित्र का उल्लेख मिलता है। सूत्र 6 में कृष्ण के महान् चरित्र, उनके श्रेष्ठ अर्द्धचक्रवर्ती राजा के रूप का, उनकी रानियों एवं पुत्रों का एवं अन्य परिजनों का वर्णन हुआ है। सूत्र 7 में कृष्ण को चाणूर, कालियनाग के हन्ता, यमलार्जुन को मारने वाले, महाशकुनि तथा पूतना के रिपु, कंसमर्दक, राजगृह के अधिपति एवं जरासंध के वर्धकर्ता के रूप में निरूपित किया है।१२ . निरयावलिका : इस ग्रन्थ के पाँचवें सर्ग में "निषधकुमार" का वर्णन है। निषधकुमार के बड़े भाई राजा बलदेव तथा रेवती के पुत्र थे। इनके वर्णन में द्वारिका वर्णन, राजा कृष्ण / वासुदेव के महात्म्य का भी वर्णन हुआ है। अर्हत् अरिष्टनेमि के द्वारिका आगमन पर श्री कृष्ण का हर्षित होना, अपने कौटुम्बिक जनों को बुलाकर तथा सजधज के साथ सब को अरिष्टनेमि के पास उनके दर्शन एवं धर्म-श्रवण के लिए ले जाने का चित्रण है। (6) उत्तराध्ययन : इस कृति के बाइसवें अध्ययन में नेमिनाथ चरित्र का वर्णन है। इसकी गाथाएँ 1,2,3,6,8,10,11,25 एवं 26 में कृष्ण सम्बन्धी उल्लेख उपलब्ध है। श्री कृष्ण के माता-पिता, जन्मस्थान, नेमिकुमार का विवाह महोत्सव आदि का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार जैन साहित्य की आदि कृतियाँ "आगम ग्रन्थों" में श्री कृष्ण-चरित्र का वर्णन स्पष्टता से हुआ है। जैन साहित्य की कृष्ण-कथा के मूलाधार में इन्हीं ग्रन्थों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इन्हीं ग्रन्थों से कृष्ण-कथा के सूत्रों को एकत्रित कर जैन साहित्य के आगमेतर साहित्यकारों ने इस कथा वर्णन को सुव्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया है: आगमेतर साहित्य में कृष्ण-चरित्र वर्णन :____जैन साहित्य में आगम साहित्य के पश्चात् आगमेतर साहित्य में कृष्ण-कथा उत्तरोत्तर विकास को प्राप्त हुई है। आगमेतर साहित्य में कृष्ण-चरित्र को वर्णन करने वाली दो प्रकार की कृतियाँ निरूपित हुई हैं-एक तो वे जिसमें त्रिषष्टि शलाकापुरुषों के चरित्र का