Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ इनके किशोर लीला के पदों में माधुर्य, दान, मान आदि शृंगारिक लीलाओं का चित्रण मिलता है। इनके सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि कुंभन कृष्ण गिरिधर सो कीन्ही सांची प्रीति। कर्म धर्म पथ छांडिकै, गाई निज रस रीति॥ (3) परमानन्ददास : सूरदास की भाँति परमानन्ददास भी उच्चकोटि के भक्त कवि थे। इनका जन्म सं० 1550 में फर्रुखाबाद के कन्नौज नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनमें बचपन से ही कविता करने की उत्कट इच्छा थी। वे हरिकीर्तन गाने में दक्ष थे। गृहस्थाश्रम में प्रवेश न करके इन्होंने कीर्तनकार के रूप में सुयश की प्राप्ति की। वल्लभाचार्य ने इन्हें दीक्षित कर श्रीनाथजी के मन्दिर में कीर्तन करने का दायित्व सौंपा। वे विनम्र एवं विरक्त कवि थे। संवत् 1641 में इनका देहावसान हुआ। बाल एवं वात्सल्य निरूपण में अष्टछाप के कवियों में सूर के पश्चात् इनका द्वितीय स्थान है। इनके पदों में श्रृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों का विस्तृत निरूपण है। इनकी रचनाओं में दानलीला, उद्धवलीला, परमानन्दसागर, परमानन्ददासजी के पद एवं वल्लभ सम्प्रदायी कीर्तन संग्रह इत्यादि कृष्ण विषयक हैं। 3 इन सबमें परमानन्दसागर इनकी प्रामाणिक रचना मानी जाती है। इन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूक्ष्मता के साथ सरलता और सच्चाई उनकी खास विशेषता है। बाल स्वभाव की मार्मिक व्यंजना देखिए अग्रांकित पद में तनक-तनक दोहरी देहैरी मैया। तात दुहन सिखवन कह्यो मोहि धोरी गैया॥ हरि विषयासन बैठिके मृदु कर धर लीन्हों। धार अटपटी देखिके ब्रजपति दीन्हों। (परमानन्दसागर) इन्होंने ब्रज भाषा में अपनी पद रचना की है। चित्रात्मकता, आलंकारिकता एवं प्रांजलता इनकी भाषा के विशेष गुण हैं। इनकी रचनाओं में बाल-प्रभाव, दाम्पत्य-भाव एवं दास-भाव की आराधना दृष्टिगोचर होती है। (4) कृष्णदास : आचार्य वल्लभ के शिष्य एवं अष्टछाप के कवि कृष्णदास का जन्म सं० 1496 में खेड़ा जिले के चिलोत्तरा ग्राम में हुआ था। ये पाटीदार पटेल थे। पिता से वैमनस्य होने के कारण वे ब्रज गये थे। वहाँ गोवर्धन पर्वत पर आचार्य ने इनको - -