________________
है.। मापुर गच्छ (अन्वय ) पुष्कर गण का उल्लेख करने वाला सं० १८८१ का एक लेख पमोसा ( कौशाम्बी) से प्राप्त हुआ है जिसमें मटारक जगत्कीर्ति और उनके शिष्य ललितकीर्ति का निर्देश है। ___ माथुर गच्छ या संघ का इतना प्रभाव था कि आचार्य देवसेन को अपने अन्य दर्शनसार में इसकी गणना अलग करना पड़ी । माथुर संघ नाम भी स्थान के कारण पड़ा है-मथुरा नगर या प्रान्त का जो मुनिसंत्र है वह माथुर संघ । मथुरा प्राचीन काल से जैन धर्म का प्रमुख स्थान रहा है यह हम मथुरा से प्राप्त बहुसंख्यक लेखों से जान चुके हैं । स्थान सापेक्षिकता के कारण संघों, गणों एवं गच्छों के नाम को लेकर बाबू कामताप्रसाद जी जैन ने काष्ठासंघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कल्पना की है कि यह संघ मथुरा के निकट जमुना तट पर स्थित काष्ठा ग्राम से निकला' है, या हो सकता है कि काष्ठासंघ जैन मुनियों के उस साधुसमुदाय का नाम पड़ा जिसका मुख्य स्थान काष्ठा नामक स्थान था।
काष्ठासंघ माथुरान्वय के प्रसिद्ध श्राचार्यों में सुभाषितरत्नसन्दोह आदि अनेक ग्रन्थों के रचयिता प्रा० अमितगति हो गये हैं जो परमार नरेश मुंज और भोज के समकालीन थे ( वि० सं० १०२० से १०७३ )। .
काष्ठासंघ, की दूसरी शाखा लाट वागट से भी सम्बन्धित दो लेख प्रस्तुत संग्रह में हैं और वे हैं दूबकुण्ड से प्राप्त ले० नं० २२८ और २३५ । सन् १०८८ ई. के लेख नं० २२८ में इस शाखा (गण ) के देवसेन, कुलभूषण, दलमसेन, शान्तिषेण एवं विजयकीर्ति नामक प्राचार्यों के नाम गुरु-शिष्यपरम्परा के रूप में दिये गये हैं । अन्तिम श्राचार्य विजयकीति उक्त प्रशस्ति के रचयिता थे। यदि पूर्ववर्ती चार श्राचार्यों का समय १०० वर्ष मान लिया जाय
१. जैन सिद्धान्त भास्कर भा० २, किरण ४, पृष्ठ २८-२९ । २. पं० नाथूराम जी प्रेमी ने बतलाया है कि दिल्ली के उत्तर में जमुना के
किनारे काष्ठा नगरी थी जिस पर नागवंशियों की एक शाखा का राज्य था। १४वीं शताब्दी में 'मदनपारिजात' निबन्ध यहीं लिखा गया था।