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जैन-शिलालेख-संग्रह
देव, बो मूलसंघ, देशिय-गण, पुत्तक गच्छ, कुण्डकुन्दान्वय, पिङ्गलेश्वर-बलि
और धी-समुदाके थे। बा. प. दे. के विद्यागुरु नेमिचन्द्र-भट्टारक-देव और भत-गुरु अभयदेव-सिद्धान्त-चक्रबर्ति थे। रा. म० दे० के शिष्य शुभचन्द्र देव थे। इनकी प्रतिमा दोरसमुद्रके जैनोंने बनायी थी।
[Es, V, Bel w tl., No I34]
हलेबोड-काद। [विना काम-निर्देशका पर रुममग ३०.६.१] [हलेची से बनी हुई बस्तिहलिमें, पार्श्वनाथ बस्तिके बाहरकी
दीवाक स्तम्म पर]. ईशान्यद-आदि-मोदलागि ईशान्यद हदिनैदु-कैयन्तरदलु आरंगय्युच्चेदट्ट शान्तिनाय-रेवरु भूमिस्थवागिहरु आवनानुं पुण्य-पुरुषं तेगदु प्रतिष्ठेय माडि पुण्यमं माडिकोळुवुदु ॥
[ईशान दिशा से शुरू करके, उससे (ईशान दिशासे ) १५ बिलस्तके अन्तरपर शान्तिनाथ देव, जिनकी. ऊँचाई ६ बिलस्त है, जमीनके अन्दर गड़े दुए है।कोई पुण्य-पुरुष उनको बाहर निकालकर, उनकी प्रतिष्ठाकर पुष्यका लाभ ले।
[Eo, v, Belur tl. No 127 ]
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पर्वत आबू-प्रारत। [सं० १६०%११.६ई.]
श्वेताम्बर लेख। [ Asiat, Res, XVI, P. 311, No xx, a.]