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जैन - शिलालेख - संगह
मणिकुट्टिमवीथीषु मुक्तासैकतसेतुभिः ।
दा[]][बूनि निरुंघाना यत्र क्रीडति बालिकाः [ ॥ २७] र्तास्मन्निरुगदंडेशः पुरे चारुशिलामयं ।
श्री कुन्थुजिननाथस्य चैत्यालयमचीकरत् || [ २८ ] भद्रमस्तु बिनशासनाय ||
सारांश
इस लेख में २८ संस्कृत - श्लोक हैं और यह प्राचीन जैन मन्दिर के सामने दीपस्तम्भ पर खुदवाया है इस मन्दिरको आजकल 'गाणिगिट्टी' मन्दिर, यानी, " तेलिनका मन्दिर" कहते हैं। पहले श्लोकमें बिन, दूसरेमें जिनशासनकी मंगलकामना है । तत्पश्चात् एक जैन संघके प्रधान सिहनन्दिके आध्यात्मिकपूर्वजों तथा शिष्योंके वंशका वर्णन है । वह इस तरह है :
:
मूलसंघ
1 नन्दिसंघ
बलात्कार गण
1
सारस्वतगच्छ
1 पद्मनन्दी
धर्म्मभूषण प्रथम, 'भट्टारक'
1
अमरकीर्ति
1