Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 516
________________ गोवर्धनगिरिके लेख ५४९ उन्नत-मानस्तम्भकेय। उन्नतियागिप्प-तेरदे पदविन्दित्तर ।। आ-मानस्तम्भमेन्तेन्दोडे ।। वृ ।। भरदि जन्माब्धियं दाण्टिसुव वर-महा-धर्ममेन्देम्ब पोतक उरुकूप-स्तम्भमम्बाङ्कन विशद-यशः-पट्टिका-स्तम्भमेम्बन्त्- । इरे मानस्तम्भमा-कूटदोळेसेव चतुज्जैन-बिम्बाघ्रि-पूजा-। परिकीर्णास्फार-पुष्पाञ्जलियोलेशेवुदी-व्योम-तारा-कदम्बम् ।। श्रीमन्नेमीश्वरोद्यन-जिन-गृह-पुरतः प्रस्फुरत्-कांस्य-मानस्तम्भ सद्धेमकुम्भं शुभमभिनव सामन्तभद्रोपदेशात् । नागप्प-ष्ठि-पुत्रः स्फुरदुरु-विभवादम्ब्वण-भेष्ठि-वर्यः सद्-धर्म-च्छत्र-दण्डं प्रमुदित-मनसाकारयद् भूरि-शोभम् ।। अन्तु मान-स्तम्भमै माडिसिदरु ॥ [जिन-शासनकी प्रशंसाके बाद, नेमिनाथ भगवान्को नमस्कार और उनकी प्रशंसा । गुम्मटाधीश्वरसे रक्षा की कामना । अम्ब्वण श्रेष्ठीको नेमिचन्द्र जिनेन्द्र की ओरसे मङ्गल-कामना। __जम्बू-द्वीपमें भारत देश, उसमें तौलव देश; उसमें अम्बुनदीके दक्षिण किनारे पर क्षेमपुर है । उसमें गेरसोप्पे नगरकी शोभाका वर्णन । क्षेमपुर का अधीश देव-महीपति था। इस महाराज के वंशावतार का वर्णन:-क्षेमपुर में पूर्व में कई राजा हुए। उनमें एक भैरव-भूपति था। यह जिन धर्म रूपी समुद्र के लिये चन्द्रमा था। उसके छोटे भाई भैरव, अम्ब-क्षितीश तथा साल्व-मल्ल थे। इनमेंसे साल्वमल्ल यद्यपि सबसे छोटा था, तथापि सबसे महान् या । उसको सोम-वंश तथा काश्यप-गोत्र का बताते हुए उसकी प्रशंसा की गयी है। उसके बाद, उसकी बहिनका पुत्र देवराय नगर और राज्य का वैसा ही बराबरीका रक्षक रहा। उसकी बहिनका पुत्र साल्व-मल्ल रहा, जिसका छोटा

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