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जैन-शिलालेख संग्रह
राजगळ मग राजय्य-देव-महा-अरसुगळ कुमाररु वल्लभराज-देव-महाअरसुगळु तावु आळुतिद्द मगरनाड होयिसळ-राज्यक्के सलुव बूडिहाळ-सीमे योळगण बस्तिय जिन-देवरिगे कोट्ट भू-दानद हेग्गेरेय वस्तिय मान्यद जीर्णोद्धारद क्रमवेन्तेन्दरे गुचिय हरदर सूरय्यन मग चिन्नवरद गोयिन्द-सेट्टियु हेग्गेरेय बस्तिय देवर-मान्यव पालिसबेकेन्दु बिन्नह माडिकोळलागि आतन बिन्नहव पालिसलू तमगू अनेक-धर्माभिवृद्धियागबेकेन्दु हेग्गेरेय गौडनके रेय केळगण ( दानकी विगत ) अक्षरदल्लू हदिनैदु-कोळग देवदायमान्यद गद्देयनू यी-आरभ्यवागि प्रतिवर्ष प्रति-फलदल्लू नीर-सरदियलि कोटटु बहेऊ एन्दु श्रीपति-राजगळ वल्लभराज-देव-महा-अरसुगळू पालिस्त बस्तिय देवदाय भ-दान जीर्णोद्धारवह शासन ( वे ही अन्तिम वाक्य ) श्री हेग्गेरेय स्थळदलु काडारम्भद होल ख ४
[शुभमस्तु । स्वस्ति । ( उक्तमितिको ), महामण्डलेश्वर श्रीपति राजके पुत्र राजय्य-देव-महा-अरसुके पुत्र वल्लभराज-देव-यह अरसुने अपने द्वारा शासित मगर-नाड्में होय्सल राज्यके बूदिहाळ-सीमे में बस्तिके जिन देवके लिये निम्न शासन, हेगेरे बस्तिके 'मान्य' की पुनः स्थापनाके लिये प्रदान किया; गुत्ति हरदरे-सूर्यके पुत्र चिन्नवर-गोविन्द-सेटिने इस वातका प्रार्थनापत्र देकर कि हेग्गेरे बस्तिके देवकी 'मान्य' चालू होनी चाहिये, इस प्रार्थनापत्रको मान्य करनेके लिये, तथा अपनी समृद्धि के लिये, हम ( उक्त ) भूमियां जो कि कुल मिलाकर धान्यक्षेत्रके १५ कोळग ( एक नाप-विशेष ) होते है. फसलके समय जलका वार्षिक क्रम भी आजसे ही चालू करते हैं। वल्लभरान-देव-महा-अरसके द्वारा प्रदत्त, बस्तिके देवदायका प्रस्थापक भमिके दानका शासन ऐसा है । हेग्गेरे-स्थलम ( उक्त ) शुष्क भूमिका दान भी हुआ।]
[ EC, XII, Chik-Nayakan halli tl., No 22.]