Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 556
________________ बेरम्बाडके लेख ५८६ [ ॐ । भगवान् अर्हत् चण्डोग्र पार्श्वनाथको नमस्कार हो । वे घरणेन्द्रपद्मावती सहित हैं । वे सब व्याधियोंको दूर करनेवाले हैं पाँच परमेष्ठी ...] [ EC, IV, Gundlupet tl., No. 96 ] ८३६ जव गल्लू:: -- कचड़ - भग्न । [ अनिश्चित कालका ] [ जगवलु ( जगवल्लु परगने ) में, जैन-मस्तिके पासके पाषाणपर ] स्वस्ति श्री कोण्डकुन्दान्वय देशी गणदमरवर मटारर शिष्यन्तिय अष्टोपवासदर क्रियागुणचन्द्र भटारर सघर्म्मगळु तोम्भत्तेळ वरिसा त वय्दुन बि • निसिधिय कानिरिसिद [ कोण्डकुन्दान्वय तथा देखी गण के अमरचर-भट्टारकी शिष्या, जो ( महीने में ) आठ दिनका उपवास करती थी और मुणचन्द्र भट्टारकी साथिन थी, ६७ वर्षतक । उसके बहनोई या सालेने यह स्मारक खड़ा किया । ] [ EC, V, Arsikere tl., No. 3. ] ८३७ -- कोलूरु :- संस्कृत तथा कन्नड़ । [ वर्ष विरोधिकृत् ] ... [ कोलूरुमें, कुमरि-हक्क लुमें पाषाण पर ] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलानम् । यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् || स्वस्ति श्रीमतु आदिनाथ - देव पादाराधक सम्यक्त्व - रत्नाकर जिन-गन्धोदकपवित्रीकृतोत्तमाङ्गेयप्प राजियब्बे - हेम्गाडिति ४५ नेय विरोधिकृतु

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579