Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 554
________________ तिरुमलैके लेख १८७ अनुवाद - स्वस्ति ! श्री! कडैकोरके अरिष्टनेमि आचार्यने, जो तिरुमलैके परवादिमल्ल के शिष्य थे, एक यक्षी की प्रतिमा बनवाई । [ South Indian ins, I, No. 73 (p. 104-105) t. & tr. J ] १ श्री [ ॥ ] [ आ २ दिक्कुरवडगळ मा ३ णाक्कर नागणन्दि- क्कुरव ४ [ डि ] गळू शे [ य् ] वित्त ति [रु ] मेणि [ ॥ ] ८३२ कलु गुम लै; - तामिल | • [ अनिश्चित काल ] नूर् सिंगणं अनुवाद - (यह ) प्रतिमा आणनूर के पूज्य गुरु सिंहनन्दिके शिष्य पूज्य गुरु नागनन्दिने बनवायी थी । [ EI, IV, p. 136, No. 6.] ८३३ क || अकल ... बस्तीपुर, कन्नड़-भग्न । [ काल निश्चित नहीं ] [ बस्तीपुरके उत्तर में एक पाषाणपर ] वाक्- चन्द्रकीर्त्तियं धवळसे दिगम्बर । ... ... ........... भव्य - प्रकार-चकोरं नलेय | य कुटिल - वाइकन्य पदाम्भोजम् ॥ [ अकलङ्ककी प्रशंसा में ] [ EC, III, Seringapatam tl, No. 145. ]

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