Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 555
________________ जैन - शिलालेख संग्रह ८३४ चिदरवल्लि, कन्नद । [ बिना काल - उल्लेखका ] [ चिदरबलि (सोसले परगना ) में, गाँव के पश्चिम बलगे रावळके खेतकी एक चट्टानपर ] अय-महित-कोण्डकुन्दा- | न्वय - सम्भव देशिकाख्य-गणदोल गुणिगळु । प्रिय-धर्म्मर् न्नेगळ्दरुपा । त्त-यशर् नन्दि- देवरी-वसुमतियोऴ् ॥ आ-गुणिगळ शिष्यन्तियर् । आगमदिष्टदोळे नेगळ्दु तपदोळ् सलेकालागमनरिदात्तति सन्द्- । ओगडिसदे नागि यब्बे - कान्तियरागळु || तोरि ... तप परिग्रहमं नेरे नोन्ताराधनातीत मनदोळ् पडङ्गल-नरिदोप्पुभक्तियिन्दमपत्य-श्रीकारियमनात्माम्बिकेंगे प्रत्यक्ष-परोक्ष तमय्दमसमान ग १८८ विनयमं मान्य- चरित [ देशिक- गण और कोण्डकुन्दान्वय नन्दि- देवकी शिष्या नागियब्र्बेकन्ति अपनी श्रद्धा और पवित्रता के लिये विख्यात थी । गृहीत व्रतोंकी परिपूर्णतापूर्वक स्वर्गवास हो जाने से, मातृक प्रेमके कारण, • माँकी स्मृतिमें... ] [ EC, III, Tirum Kudlunarasipur, tl., No. 133 ] ... ८३५ बेरम्बाडि; - संस्कृत- भग्न । [ बिना काक निर्देशका ] [ बेरम्बाडिमें ( कुतनूरु परगना ) मारी मन्दिर के पास एक पाषाणपर ] ओं नमोऽर्हते भगवते चण्डोग्र - पारिशव ( पार्श्व ) नाथाय धरणेन्द्रपद्मावती-सहिताय सव्र्वव्याधिहरं अळजुमोगे । परमेष्ठी • नाना श्री पञ्च ... ...

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