Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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[ सं० १८३७, शक
शत्रुञ्जयके लेख
७७६७६२
शत्रुञ्जय - प्राकृत ।
१७६३ से सं० १३३६, शक १७८१ तक =
ई० १८४० से ई० १८२६ तक ] श्वेताम्बर लेख ।
७९३
कोथरा - संस्कृत |
[सं० १९१८, शक १७८३ = १८६१ ई० ] श्वेताम्बर लेख । [ D. P. Khakhar, Report on remains in Kachh (ASWI, selectoins, No, CLII ), p. 75-76, t.; p. 91a ( ins. No. 1 ). ]
७६४-७६८
शत्रुञ्जय; - प्राकृत- 1
[सं० १९२१ से १६३० तक = ई० १८६४ से १८७३ तक ] श्वेताम्बर बेख ।
७६६
शालिग्राम - संस्कृत और कन्नड़ ।
[ शक १८०० = १८७८ ई० ]
[ शाळिग्राममें, अनन्तनाथ-बस्ति के सामनेके स्तम्भपर ]
श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ||
स्वस्ति श्री विनयाभ्युदय - शालिवाहन शकाब्दः १८०० नेय ईश्वरसंवत्सरद माघ-शु ५ लु स्वस्ति श्री पेनगोण्डे-शेनगण-संस्थानद श्रीलक्ष्मीसेन भट्टारक-स्वामियवर शिष्यनाद यिदगुरु पट्टण-त्रु वीरप्पनवर कुमार अनवर कुमार हजूरु- मोतीखाने वीरप्प तम्म तिम्मप्प सह शालिग्राम

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