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नरसीपुरके लेख
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श्रीमत्परम-गंभीर-स्याद्वादामोध-लाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ।।
स्वस्ति श्री विजयाभ्युदय-शालिवाहन शक-वरुष १७५१ विरोधि सं० कार्तिक-शु ५ भानु ॥ श्रीमद्राबाधिराज महाराज श्री कृष्ण-राज-वाडेयरय्यनवरु मैसूर-नगरदल्लि रत्न-सिंहासनारूढरागि पृथ्वी-साम्राज्यं गेम्वन्दु । दळवायिकेरेगे बन्दु इदु तपिशिकोण्डु अडविगे होद आनेयन्नु अप्पणे-मीरेगे गुण्डिनिन्द होडिशि हरिगे वपिस्त बगे हेग्गडदेवन कोटे अमलुदार शान्तय्यन मग देवचन्द्रयगे गिनामागि अप्पणे कोडिसिद्दु ताळोकु-पैकि सागरद होबळि वळित नरसिंहपुरद ग्रामदल्लि बेदलु कं गु १२-० वरहद भूमिगे चतु-दिक्किगू शोला-प्रतिष्ठे माडिसि कोदु यी-शिलेगे पश्चिम होलपारिगे तुण्डु सहा १ यिदके शेरिद अडु सह कुळ मोगचु कं० गु० १०-६ यी शिलेगे पूर्व इत्ति-होल १ के कुळ मोगचु के गु १-४ उमयं हन्नेरडु-वरहाद बेदलु-भूमिगे यी-कार्तिक-ब १३ सोमवारदल्लु शिला-प्रतिष्ठे माडि यीत यीतन पुत्र-पौत्र-पारम्पर्यवागि निरुपाधिक-सर्वमान्यवागि अप्पणे कोडिसिद शासना।
[जिन शासन की प्रशंसा।
जिस समय मैसूरकी रत्नजटित गद्दीपर बैठकर राजाधिराज महाराज कृष्णराज वोडेयरय्य इस पृथ्वीपर राज्य कर रहे थे:-एक हाथी दळवायिकेरीमें आया और बङ्गल में भाग गया। हाथीको मारकर राजाके पास लानेका हुक्म हुआ। हेम्गडदेवन्कोटेके अमलदार शान्तय्यके पुत्र देवचन्द ने यह काम सम्पन्न किया, तो उसे इनाम मिलने का हुक्म हुआ; और इनाम में उसे उपयुक्त तालुकेके सागर होबलि ( प्रदेश ) के नरसिंहपुर गाँवमें १२ वराह-जितने मूल्यकी सूखी जमीन दी गयी। इस भूमिको चारों ओर पत्थरोंकी निशानीसे अङ्कित कर दिया गया था। यह भूमि उसके पुत्रों, पौत्रों और सन्तान दरसन्तानके उपभोग के लिये बिना किसी बाधाके, सब करोसे मुक्त रूपमें दी गयी थी।]
[ EC, IV, Heggadadevan-Kote tl., No. 61 )