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गोवर्द्धनगिरिके लेख
५४३ अन्य रिश्तेदारोंसे सम्मति लेकर इन्होंने इस पुण्य-कार्यको करनेका इरादा देवभूपालसे प्रकट किया। और महाराजकी सम्मति, चतुर्विध संघकी सम्मतिपूर्वक, एक शुभ दिन उन्होंने अपना इरादा पूरा किया तथा घण्टेकी धातु ( Bellmetal) का स्तम्भ बनवा दिया। इसी अन्तरालमें, देवरसिके पद्मरसि और देवरसि नामकी युगल पुत्री उत्पन्न हुई। उनकी ही ऊँचाई जितनी ऊँचाईका सुवर्ण-कलश चैत्यालयके सामने उस स्तम्भपर चढ़वाया । इसके बाद मानस्तम्भका वर्णन है। [ EC, VIII, Sagar tl., No. 55 ]
६७५ शत्रुञ्जय-प्राकृत । [सं० १६२० = १५६३ ई.]
श्वेताम्वर लेख ।
६७६
सिरोहो-संस्कृत। [सं० १६३४ = १५७७ ई.]
श्वेताम्बर लेख। { H. H. Wilson, Asiat. Res., XVI, P. 316,
No XLIII, a]
६७७ हेग्गेरे,-कन्नड़। [शक १५०० = १९७८ ई.]
[हेग्गेरेमें, बस्ति के एक पाषाणपर ] श्री शुभमस्तु स्वस्ति श्री जयाभ्युदय-शालिवाहन-शक-वरुषङ्गळ १५०० मेले प्रमाधि-संवत्सरद माघ सुद १ लू श्रीमन्महामण्डलेश्वर ओपति