Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 537
________________ ५३२ जैन-शिलालेख-संग्रह की। उसके गुरू विशालकीर्ति भट्टारक थे। ये विद्यानन्द-मुनीश्वरके शिष्य, बलाकारगणके प्रधान, राय-राजगुरु देवेन्द्रकीर्ति-भट्टारकके शिष्य थे। बोम्मण-श्रेष्ठीके पुत्र बोम्मणने मन्दिरकी रक्षा की थी। उसके पांच पुत्र थे।] [ EC, VIII, Tirthahalli tl., No. 168] ६६२-६६६ शत्रुजय-प्राकृत । [सं० १९७५ से सं० १६८३ = १६१६ ई० से १६२६ ई. तक ] श्वेताम्बर लेख । गिरनार-संस्कृत। [सं० १६८३१६२६ ई.] स्वेताम्बर लेख। [ ASI, XVI, p. 360, No. 31, t. & tr. ] ७०१ शत्रुजय;-प्राकृत। [सं० । [६]८४ = १६२.ई.] श्वेताम्बर लेख। ७०२ शत्रुजया-संस्कृत। [संवत् १६८६ व्या शक सं० १५५१] (बड़े आदीश्वर मन्दिरके उत्तर-पूर्वके छोटे आँगनमें, दिगम्बर जैन मन्दिरका यह शिखालेख है।)

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