Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह
नमन इत्यादि । पायादाया[स] खेद-लुमित-फणि-फणा-रत्न-निर्मान-नियंच- । छाया-माया पतङ्ग-द्युति-मुदित-वियद्-वाहिनी-चक्रवाकम् । अभ्रान्त-भ्रान्त-चूड़ा-तुहिनकर-करानीक-नाळीक-नाळ । च्छेदामोटानुधाव ... रथ-खगं धूर्जटेस्ताण्डवं वः ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय-शालिवाहन शक वर्ष १५६० नेगे सलुव ईश्वरसंवत्सरद फाल्गुन शुद्ध ५ यु गुरुवारदल्लु श्रीमद्धेलापुरी चेन वेङ्कटेखर-क्रम-कमल-युगळ ... स्थिर-राज-हंसगद वैष्णव-मतामृत-वाधि-प्रवर्द्धमानपूर्ण सुधासूति-बिम्बायमानराद प्रजा-पालन-मन्त्र-पालन-आत्म-पालन-कुल-पालन समञ्जसत्व-सप्तांग-राज्य-सम्पन्नराद कोट्टभाषेगे तेप्पुव धोरेगळ गण्ड दुष्ट-निग्रह-शिष्टप्रतिपालकराद सामादि-चतुरुपाय-संयुतराद । पञ्चाङ्ग-सन्मन्त्र-गुण-समेतराद । रिपुराय-शरभ-गण्ड-भरुण्डराद बीर-क्षत्र-चूड़ामणि | शरणागत-वज्र-पञ्जरराद । सिन्धुगोविन्द धवळांक-भीम मणिनागपुर-वराधीश्वर । बलिदु सप्तांग-हरण । तुरकदळ-विमाड इत्याद्यनेक-बिरुदावळी-विरानगानराद कृष्णप्प-नायक अय्यनवर कलि-कालाष्टम चक्रवर्ति वेङ्काद्रिनायक-अध्ययनवरु बेलर-राज्यवन्नु धर्मदि प्रतिपालिसुतं यिरलु हळेयबोड बिजय-पार्श्वनाथ खामिय बसदिय कम्भगळिगे हुच्चप्प-देवरु लिंग-मुद्रेय हाकलागि आ-लिङ्गमुद्रेयनु विजयप्पनु तोडेयलागि । सजन-शुद्ध-शिवाचार-सम्पन्नराद । देव-पृथ्वीमहामहत्तिनोळगाद अतिथिगळु । सूर्य्यन तेज चन्द्रन शान्त समुद्रद गम्भीर । नन्दिकेश्वरन प्रतिज्ञे कल्पवृक्षद फल बलिय वीरते रामन सयिरणे लक्ष्मणन हितकार हरिश्चन्द्रन सत्य कोट-भागे तप्पुवर मीसेय कोयिववरूं । नरनन्ते तीर्थ-सिंह ... मठ-मने-देवालय-बीर्णोद्धारक क्षमे-दयेवन्तरं विष्णुविनुपाय, ब्रह्मन चातुर्य हनुमन्तन शक्ति बाम्बवन युक्ति प्रहादन भक्ति नित्य-जप-शिव-पूजा-पञ्चाक्षरीमन्त्रालंकृतराद देव-पृथ्वी-महा-महत्तु यी-स्थळद हलेबीड बसवप्प देवरु पुष्पु. गिरिय पट्टद-देव-मुन्ताद देशा-भागद महा-महत्तुंगळिगे पेसर राज्यद जैन सेटि-गळु मावदईस्परमेश्वर पाद-पद्माराधकराद स्याहाद-मत-गगन-सूर्यराद आहा

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