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जैन-शिलालेख संग्रह
३. भट्टारक श्री जगत्कीर्चिस्तत्प? भट्टारक श्री ललितको४. तिजी तदाम्नाये अग्रोतकान्वये गोयलगोत्रे प्रयागन५. गरवास्तव्यसाधु श्रीरायजोमलस्तदनुजफेरुम६. लस्तत्पुत्रसाधु श्री मेहरचन्दत्तभ्राता सुमेरचन्द७. स्तदनुजसाधु श्रीमाणिक्यचन्द स्तत्पुत्रसाधु श्री हो८.रालालेन कौशांबीनगरवाह्य प्रभासपर्वतोपरि श्री६. पनप्रमजिनदीक्षाहान कल्याणकक्षेत्रे श्री जिन१०. बिंबप्रतिष्ठा कारिता अंग्रेजबहादुरराज्ये सु [शु ] भ[1]
अनुवाद-शुक्रवार, मार्गशीर्ष शुकळा पष्ठी, सं० १८८१ के दिन, काष्ठासंघ, माथुरगच्छ, पुष्करगण, लोहाचर्यके अन्वय ( परम्परा ) में भट्टारक श्री जगत्कीर्ति उनके पट्टपर भट्टारक श्री ललितकीर्तिबी इनकी आम्नायमें अग्रोतक अन्वय (जाति) तथा गोयल गोत्रके प्रयाग नगरके रहनेवाले साधु ( साहु = सेठ ) श्री रायचीमल, उनके अनुज फेरुमल्ल, उनके पुत्र साधु श्री मेहरचंद, उनके भ्राता सुमेरचंद, उनके अनुन साधु श्री माणिकचंद, उनके पुत्र साधु श्री हीरालालने कौशाम्बी नगरके बाहर प्रभास पर्वतके ऊपर श्री पद्मप्रभ ( तीर्थङ्कर ) के दीक्षा कल्याणक क्षेत्रमें श्री जिन ( पार्श्वनाथ) बिंब प्रतिष्ठा कराई। यह काल अंग्रेज लोगोंके शासन का था [ १८२४ ई०] ।
[ EI, II, NoXIX, No3 (P. 244) ]
श्रवणबेलगोला-बद। [शक ४८ = २७ ई.]
[जै. शि० सं०, प्र० मा०]