Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 546
________________ बेळ्ळूरुके लेख ७२३ बेळ्ळूरु-संस्कृत और का। [बिना कालनिर्देशका, पर सम्भवतः लगमग १६८० ई० का ] [बेल्लूरु ( नेल्लीकेरी परगना ) में विमल-तीर्थकरकी बस्तिमें बरण्डाको दोवालपर] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोधलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ श्रीसमन्तभद्रमुनये नमः । श्रीमतु-डिल्ली-कोल्लापुर-जिनकञ्चि-पेमुगुण्डेसिहासनाधीशराद लदमोसेन-भट्रारक प्रतिबोधदिन्द श्री-मैसूर देवराजवोडेयरु धारा-दत्तवागि कोट क्षेत्रदल्लि स्वशिष्यरह हुलिकल्ल पदुमण-सेटर सुतराद दोड्डादण्ण-सेटर पुत्रराद सकरे-सेदृरु अभ्युदय-निश्श्रेयस-निमित्वागि आ-चन्द्राकवागि निर्मापिसिद विमल नाथन चैत्यालयवु श्री [जिनशासनकी प्रशंसा । समन्तभद्र-मुनिको नमस्कार । डि (दि) ल्ली, कोल्लापुर, जिनकञ्चि, और पेनुगोण्डेके सिंहासनाधीश लक्ष्मीसेन-भट्टारकके प्रतिबोधन ( सम्मति ) से मैसूरके देवराज-वोडेयरकी दी हुई जमीनपर हुलिकल पदुमण-सेट्टिके पुत्र दोडादण्ण-सेटिके पुत्र सक्करे सेटि-जो कि लक्ष्मीसेन भट्टारकके शिष्य थे-ने अपने अभ्युदयकी वृद्धि के निमित्त विमलनाथ चैत्यालय बनवाया था और यह कामना की थी कि यह चैत्यालय जबतक सूर्य-चन्द्र हैं तबतक इस पृथ्वीपर रहेगा। [EC, IV, Nagamangala, tl. No. 43 ] - - -

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