Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
५५८
जैन - शिलालेख - संग्रह
६९१
मेलिगे, संस्कृत तथा कन्नड़ । [ शक १५३० १६०८ ई० ]
[ मेलिगेमें, रङ्ग-मण्डपके दक्षिण-पश्चिम की ओर आदिनाथ बस्तिमें एक पाषाणपर ]
श्रीमदनन्तनाथाय नमः
श्रीमत्परमगंभीरस्याद्व।दामोघलाञ्छनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं विनशासनम् ॥
श्रीमद्गीर्वाण चक्रे फणिपति-मकुटोद्भासि माणिक्यमाला - । रोचिः - प्रक्षाळित श्री चरण- सरसिज - द्वन्द्व - बाभास्यमानः । मानस्तम्भाम्बुजाताकर-कलित - लसत् - खातिकाद्युद्ध-शोभोऽ सौ स्वान्त् सन्तोषयन् श्री- समवसृति-पति
त्यनन्तो जिनेशः ॥
स्वस्ति श्री जयाभ्युदय - शालिवाहन शक- परुष १५३० नेय सौम्यसंवत्सरद मात्र शुद्ध १० आदिवारदलु ||
वृ ॥ निद्राभूत-महीश - वारिज-ततेः कुर्व्वन् विकास-श्रियम् सन्मार्गाम्बर- भासमान विसरत् तेना |नधिस्सर्वदा | वीर-दमापति-भूरि- कैरव - कुलं सङ्कोचयन् सन्ततम्
श्रीमद्- वेङ्कट- देव राय - तरणिस्तीव समुज्जृम्भते ||
इत्याद्यनेक-बिरुदावळि विराजमानराद श्रीमद्- राजाधिराज राज- परमेश्वर श्रीवीरप्रताप श्रीमद्- वेङ्कटपति - देव - महाराय पेनगोण्डे सिंहासनारूढ़ रागि प्रतिपालिसुत्तिर्द्धं समस्त-राज्यङ्गळोळायतिश यमनुळवन्य- देशदोळु ॥
अन्तेसेववन्य- देशदोळ् । अन्तातीत प्रकार -शोभा-रुचियम् ।

Page Navigation
1 ... 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579