Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 532
________________ के लेख ६९० वेणूर;-- कन्नड़ । [ शक सं० १५२६ = १६०४ ई० ] [ गोम्मटेश-मूर्तिस्वम्भके ठीक बायें तरफ ] १. श्री शकव [र्ष ] मंगणि [ से स] सिरदिं मिं२. गुदु लेकमु [ ल ] शतदिष्पता [२] नेय ३. शोभकृदन्दद फाल्गुनाख्यमासाथि ४. [ ] शुक्लपक्ष दशमी गुरुपुष्यद यु ५. [ग्म ] ल [ग्न ] दोळ् देशिगणा [ ग्र ] गण्यगुरु६. पंडित [व] न दिव्यवाक्य [ हिं ] ॥ [ १ ] राय ५५७ ७. कुमार [ नो ] पुर्वाळयं मयि पांड्य ८. कदेवि [य पुत्रनत्र ] सोमायतनं ६. श धु ] नुरुसाहसि पांड्यट१०. पानुबनुद्धदानराधेयनुदा - ११. र [ पुंजळि ] के पट्टवनाळ्व नृपाणि १२. तिमभूभुजं श्रीयुतनं प्रति [ ष्ठ ] १३. [स] [न] दिनिना [[म] न [नं [ज] न गुं [म] टेशनं ॥ [२ ॥ ] [ पहले शिलालेखकी तरह, इस लेखमें भी बताया गया है कि मूर्तिकी स्थापना तिम्मने की थी । इस लेख में पूर्व सम्बन्धोंके साथ-साथ तिम्मको सोमवंशका धुरीण तथा पुंजळिकेका शासक बताया गया है। समय इस लेखमें १५२६ ( शब्दों में ) शक वर्ष है, जबकि पूर्व लेख १५२५ अतीत वर्षका है । 'गुम्मटेश' बाहुबलीका ही नामान्तर है । ] 1 [ EI, VII. No 14. F. J

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