Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 03
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 521
________________ जैन - शिलालेख - संग्रह श्रीमत्सोमकुलामृताम्बुधिविधुः श्रीजैनदत्तान्वयः श्रीमद्भैरवराज तुङ्गभगिनि श्रीगुम्मटाम्बासुतः । श्रीमद्भोगिसुरेन्द्रचक्रिमहिम श्रीभैरवेन्द्रप्रभुः श्री रत्नत्रय भद्रघामचिन पानिर्माय्य संसिद्धिभाक् ||५|| श्रीमच्छालिशकाब्दके च गलिते नागाभ्रषाणेन्दुभिश्राब्दे सद् व्यय नाम्नि चैत्र-सित-षष्ठयां सौम्यवारे वृषे । लग्ने सन्मृगशीर्ष - भे चिरतरां श्रीभैरवेन्द्रेण ते श्रीरत्नत्रयभदधामजिनपा भान्तु प्रतिष्ठापिताः || ६ || જય जिनाय नमः ॥ स्वस्ति श्री [ ॥ ] शालिवाहन शक वर्ष १५०८ नेय व्यय संवत्सरद चैत्र शुद्ध षष्ठियु बुधवार मृगशीर्ष - नक्षत्रवु वृषभलग्नदल्नु कलियुगाभिनव-भरतेश्वरचक्रवर्ती गुत्ति हम्निन्वरगण्ड [ प ] त्ति- पोम्बुच्च पुरवराधीश्वर मरे - होक्करकाव मारान्तवैरि मम्नेय - राय-मस्तकशूल षड्दर्शन स्थापना चार्य सोमवंशशिखामणि काश्यपगोत्र पवित्रीकरणदक्ष 'पोम्बुच्च-पद्मावतोलब्धवरप्रसाद सम्यक्त्वाद्यनेकगुणगणालंकृत जिन-गन्धोदक- पवित्रीकृतोत्तमाङ्ग अरुवत्तार - मण्डलीकर- गण्ड होम्नमाम्बिका प्रियकुमार-भैररस-वोडेयर-अळियरेनिप श्रीमजिनदत्तराय - वंश-सुत्राम्बुधिपूर्णचन्द्र श्रीमद्वीर- नरसिंह- वङ्गनरेन्द्र श्रीगुम्मटाम्बा कुलदीपक- प्रियसूनु अरिराय-गण्डरडावणि श्रीमदिम्मडि- भैररसवोडेयरु तमगे अभ्युदय - निःश्रेयस- लक्ष्मी-सुख-सम्प्राप्ति-निमित्यागि कारकळद पाण्ड्यन गरियल्लि श्री - गुम्मटेश्वरन संनिधानदल्लि कैलासगिरिसन्निभ चिक्कबेट्टदल्लु ॥ श्रीकान्ताकुल वेश्म किं वरयशः कान्ताप्रमोदागरं भूकान्तारति सजयवधू- क्रीडास्पदं किं पुनः । स्यात्का रोज्ज्वल-सन्नयद्वयमयी श्रीभारतीरङ्गभूः स्वः श्री-मुक्ति-रमा-स्वयम्वरगृहं श्रीजैन गेहं वृषे || ७ |

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