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जैन-शिलालेख संग्रह तच्छिष्य-वृषभदास-वणिना लिखितं पद्यमिदं विद्यानन्दोपाध्यायेन कृतम् । श्री।
[ यतिपति-मुनिचन्द्रार्यके मुख्य शिष्यने मुनिचन्द्रार्यके लिये समाधि बनाई। यह श्लोक उनके शिष्य वृषभदासने लिखा और इसको बनानेवाले थे विद्यानन्दोपाध्याय ।]
दूसरा लेख [उसी पहाड़ीपर, सेनगण निषधिकी उत्तर-पूर्वकी चट्टानपर ] कालोन-गणद मुनिचन्द्र-देवर पाद अवर शिष्य आदिदास बरसिद
[ कोल्लारगणके मुनिचन्द्र-देवके चरणचिह्न उनके शिष्य आदिदासके द्वारा स्थापित किये गये थे।]
तीसरा लेख [ उसी पहाड़ीपर, मुनिचन्द्र-निषधिके एक पाषाणपर ] ईश्वर-संवत्सरद श्रावण-बहुल श्री-मूलसंघ-कोलाग्र-गणद मुनिचन्द्र-देवरिंगे निषिधि ... ... अवर पादवन्नु अवर शिष्य आदिदास भावियण्णगळु माडिसिदरु श्री श्री श्री
श्रीमूलसंघ और कोलान-गणके मुनिचन्द्र देवका स्मारक। उनके चरणचिह्नोंकी स्थापना उनके शिष्य आदिदासने की थी। (यह कार्य ) आवियण्णके द्वारा संपन्न किया गया था। ] [ EC,IV, Chamrajnagar tl., no 147, 148 and 161 ]
, इस रसोक का उपर्युक अर्थ गलत मालूम होता है। श्लोकार्य से तो समाधि लेनेवाले स्वयं मुनि चन्द्रार्य के प्रधान शिष्य थे, न कि प्रधान शिष्य ने मुनि चन्द्रार्य के लिये समाधि बनायी। 'समाधि लेने का अर्थ होता है 'समाधिको प्राप्त हुमा' न कि 'समाधि बनाई। इसका कर्ता भी अपशिष्यो है।