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जैन-शिलालेख-संग्रह
पल-कालं नित्य-पूषा-विधिगे मेषव तोण्टङ्गळं द्याणम तान् ।
ओलविं नन्दादि-दीप्ति-प्रमुख-सकल-दीपक्के नैमित्तिकक्कम् । स्थलमीयाष्टाह्निकादि-प्रमुख-तिथिगमीयापणं पात्र-दानम् ।
नेलेयप्पन्तावर्ग बेप्पडिसि बरसिदं वृत्ति यं पद्मनाभम् ॥ कं ॥ अपरिमितमुचितमेम्बीय- ।
उपकरणङ्गळने कोट टु वैदिक-लौकिक- । निपुणनं ई अद्मण-सचिवं । सुपरीक्षितमागि बरसिदं शासनमम् ॥ पद्मं विनमित-जिन-पद-। पड़ सजनरोळेसेव विगत-छिद्मम् । पद्मा-प्रिय-कर-गुण-गण-1 समं नित्य-प्रसन्न-निज-मुख-पद्मम् ॥ [पाय जिनेन्द्र का पूजक, पण्डिताचार्यका शिष्य, नागाम्न और ब्रह्मका पुत्र, पद्माका पति तथा मल्लिकाका प्रिय, साल्वेन्द्रका कृपापन, मुख्य मन्त्री पद्म था । उसकी जैन भक्तिका वर्णन । उसने एक जिन चैत्यालय बनवाया था, उसमें पाश्वनाथ भगवान्की स्थापना कर दैनिक पूजा और मुनियोंके आहार दानके लिये प्रबन्ध किया था। ( उक्त मितिको ), मंत्री पद्मनाभने पद्माकरपुरमें पार्श्वनाथकी स्थापना की, और इसमेंसे ( उक्त ) विभिन्न कार्योंके लिये अलग-अलग हिस्से निकाल दिये, और एक शासन लिख दिया । पद्मकी प्रशंसा।]
[ EC, VIII, Sagar tl., No. 163. part II. ]
शत्रुञ्जय-प्राकृत।
सं० १५..( ....ई.)
यह लेख श्वेताम्बर सम्प्रदाय का है। [G. Buhler, EI, II, No. VI,No. 117 (p. 88), ३.]