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मालियर के लेख
-६३२
ग्वालियरः प्राकृत
[ É• 1820=1880 f• ]
... ७ शुक्रे पुन
श्री आदिनाथाय नमः ॥ संवत् १४६७ वर्षे वैशाख र्वसु नक्षत्र श्रीगोपालचल दुर्गे महाराजाधिराजरामा श्रोडुंग [र सिंहराज्य ] संवर्त्तमानो श्रीकाञ्चीसंघे मायू[थु]रान्वयो पुष्करगणभट्टारक भीग (गुणकोर्त्ति - देव तत्पदे यत्यः (शः) कोर्त्तिदेवा प्रतिष्ठाचार्य श्रीपंडित रघू (इधू) तेपं । आभाये (म्नाये) अग्रोत वंशे मोद्गलगोत्रा सा ॥ धुरात्मा तस्य पुत्र साधुस्रोपा तस्य भार्या नान्ही । पुत्र प्रथम साधु क्षेमसी द्वितीय साधुमहाराजा तृतीय असराज चतुर्थ धनपाल पञ्चम साधु पाल्का । साधुक्षेमसो भार्या नोरादेवी पुत्र - ज्येष्ठपुत्र भधायि पति कौल ॥ भ - भार्यां च ज्येष्ठस्त्री सरसुती पुत्र मल्लिदास द्वितीय भार्या साध्वीसरा पुत्र चन्द्रपाल । क्षेमसीपुत्र द्वितीय साधु श्रीभोजराजा भाषो देवस्य पुत्र पूर्णपाल ॥ एतेषां मध्ये श्री ॥ त्यादिजिनसंघाधिपति काला सदा प्रणमति ॥
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अनुवाद - आदिनाथको नमस्कार । सं० १४६७ बे वैशाख सुदो ७, जब पुनर्वसु नक्षत्र उदित हो रहा था, और जिस समय महाराजाधिराज डूंगरेन्द्रदेव गोपाचल ( आधुनिक ग्वालियर ) के किले में राज्य कर रहे थे। तब काचो संघ के मयूर अन्वयके, पुष्कर गणके भट्टारक गुणकीर्त्तिदेव के बाद उनके पट्टाधीश कीर्त्तिदेव हुए। इसके बाद लेखमें पट्टाधीशके पदपर आसीन होनेवालो में प्रतिष्ठाचार्य पण्डित ( पुरोहित ) श्रीरघू, तत्पश्चात् पण्डित श्रीमाया नाम आये है। श्री भाया के पुत्र 'साधु' भोपा, उसकी पत्नी नन्ही थी। इसके बाद उनके पुत्र और पुत्रों की पत्नियों तथा उनके पुत्रोंके नाम आये है । अन्तमें