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ये) और गौरी नामक स्त्रियों के द्वारा हुई थी। ये लोग अपने को जिनचन का भक कहते थे और दिगम्बराम्नायी खण्डेलवाल पाति तथा पाकनीवाल गोत्र के थे।
पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख बताता है कि ये पाषाण-लेख बारव के राज्यकाल में उत्कीर्ण किए गए थे। ये लङ्गरदेव उस समय के स्थानीय शासक रहे होंगे लेकिन इतिहास में उनका कोई पता नहीं चलता। उन प्रतिमाओं को संभवतः किसी मूर्तिभक्षक द्वारा आपत्काल प्राप्त होनेपर किसीने छिपाया होगा।
__श्रीमान् नवाब महोदय ने इन ११ प्रतिमाओं को, अजमेर के गवर्नमेंट म्यूजियम के बन जाने पर उसे उन्हें टोंक स्टेट के उपहार के रूपमें भेंट देने का संकल्प प्रकट किया था। [Hiranand Shastri, A S P & U P annual Report
1903-1904 P. 61-62, 8.]
ग्वालियर-प्राकृत।
[सं० १६१०३५४ ई.] (१) सिद्धि संवत् १५१० वर्षे माघसुदि ८ (अ)टमै (म्यां) श्री गोपगिरी
महाराजाधिराजरा(२) बा श्री ड(डु)गरेन्द्रदेवराज्या वर्तमाने] भीकाञ्चीसंघे माय (थु)
रान्वये भट्टारक श्री (३) क्षेमकीर्तिदेवस्तत्पदे श्री हेमकीर्तिदेवारतत्पदे श्री विमलकीर्षि
देवा ... ... ... (४) डिता ... ... सदाम्नाये अनोतर्वशे गर्गगोत्रे सा... ...त (५) योः पुत्रा ये दशाय भीवंद भार्या मालाही तस्य प्रबसाषेषार य...
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