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हिरे-आवलिके लेख
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दान और सीमाओंकी विस्तृत चर्चा आती है; और वे हो अन्तिम वाक्यावयव)।
स्वस्ति । ( उक्त मितिको ), श्री-मूल-संघ देशीगण पुस्तक-गच्छ और कोण्डकुन्दान्वयके, आर्य शुभेन्दुकी सन्तान विजयकीर्ति देवके प्रिय.......लि-देव. को यह मन्दिर मिलनेके बाद इसकी पुनः स्थापना की। और राजा ... ... कोङ्गाळव सुगुणि-देवीने, अपने शरीररक्षक विजयदेवके द्वारा, इसलिये कि अपनी मां पोचबरसिके लिये पुण्योपार्जन हो सके, -(प्रतिमाकी स्थापना की और इसके लिये जैसे कि लेख में कहे गये हैं, सीमाओं सहित ) दान दिये। शाप ।] [ EC, IX, Coorg tl., No. 39 ]
५६१ श्रवणबेल्गोला-काद। [बिना कालनिर्देशका]
०शि० सं०, प्र० भाग)
हिरे-आवलि, कबर। [वर्ष आङ्गिरस १३५३ ई. (ल. राइस) ]
[हिरावलिमें, पाषाणपर] स्वस्ति श्रीमद् आहिर-सं [व] श्च (स) रद आन (षा)-सुध त्रयोदशेगुरुवार दन्दु। मूल-संघद शुभचन्द्र-देवर गुड अवलिय मसण गोडन मग गौरव-गोडन तम्म काळ-गोड समाधियिं मुडिपि स्वर्ग-प्राप्तनाद ।।
[ लेख स्पष्ट है । राजाका उल्लेख नहीं है । ] [Eo, VIII Sorab ti, No 111]