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जैन-शिलालेख-संग्रह
ओडेयर कयिन्दवु बिडिसि धी-गुम्मटनाथ-स्वामिगळिगे आ-चन्द्राई सलु. वन्तागि गुम्मटपुरवेन्दु कोट्ट दान-शासन ।
स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां ।
पष्टि-वर्ष-सहस्राणि विष्टायां जायते कृमिः ।। अक्षयसुखमी-धर्ममनीक्षिसि रक्षिसुव पुण्य-पुरुपर्गक्कुम् । भक्षियिपातन सन्तानक्षयमायुःक्षय कुलक्षयमक्कुम् ।।
(हमेशाकी तरह अन्तिम श्लोक ) [जिन शासनकी प्रशंसा ।
इस लेख में विजयी बुबारायने, स्वर्गप्राप्तिके लिये, बेळगुळ (श्रवणबेल्गोल ) के गुम्मटनाथ-स्वामी की पूजा एवं सजावट के लिये तोटहल्लि गाँव भेटमें दिया है । बुधाराय भगवटहत्यरमेश्वर का आराधक था। बयिनाइ , मसनहल्लि कम्पनगवुडका अधिपति था । तोटहल्लि गांवके साथ-साथ उसकी चारों तरफकी सीमाओंके अन्दरके तालाब, धान्य (चावल )-भूमि, सूखे खेत, बगीचा, भण्डार, आसामी, 'हाम्बलि', आयका रुपया," , छप्परखाने, " . .. निम्न श्रेणीकी चीजोपर कर, चुङ्गी, भूमि-भण्डार, निधि, रहन (निक्षेप), जल, पाषाण तथा पूरे स्वामित्व ( मालिक ) के जितने अधिकार हैं, वे सब दिये। इन चोनों को नागण्ण-ओडेयरके हाथ से दिलवाया तथा इन सबमें राजा तथा दण्णायककी भी आजा ले ली, जिससे कि यह सब दान तबतक जारी रहे जबतक
चन्द्र और सूर्य गुम्मट स्वामीकी रक्षा करते हैं। आर गाँवका नाम गुम्मटपुर रख दिया। इस सबका उसने दान-पत्र ( शासन ) लिख दिया । ]
[ EC, IV, Heggadaderankote tl., No. 1]
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