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कुप्पटूरके लेख
खस्ति-भागस्ति विषयो विषयोऽखिल-सम्पदाम् । निलयो लय-राहित्यादासतां धीमतां सताम् ॥ तत्र ॥ नाळिकेराम्र-पूगा [...] चारामेण विराजितः । विद्यते कुप्पदराख्यो ग्रामो गोपेश-रक्षितः। तत्रास्ति पिराधीश-भू-सती-तिलकोपमः । जिन चैत्यालयो नाम कदन्यैः कृत-शासनः ।। तच्चत्य-पूजनोद्योग-चातुरी-वार्दि-चन्द्रमाः । चन्द्रप्रम इति ख्यातः पालनाथस्य बान्धवः ।। पितृ-दुग्गैश-निर्दिष्ट-गुरु पण्डित-सेवकः । वर्तमाने चित्रमानौ वत्सरे कातिकेच सः॥ मासे स कृष्ण-दशमी-तियो सोम-समाये। बारे दुरि-यम-राड्-दूत-ज्वर-गदार्दितः ।। आयु:-परिसमाप्तेश्च कृत-पुण्य-परिग्रहः । स-सुतः ... ... ... .. नित्य-सुखास्पदम् ।। श्री श्री
[जम्बूद्वीप, भरतचेत्रमें श्रीधरपर्वतके पास नागरखण्ड नामका एक प्रदेश था। उसमें अनेक फल सहित वृक्षोंके बगीचों सहित, गोपेश द्वारा रक्षित कुप्पटूर् नामका गाँव था। उसमें राजा हरिहरकी भूमिमें एक चिन-चैत्यालय था, जिसमें कदम्बोंकी तरफसे एक शासन ( दान-लेख) मिला था। उस चैत्यमें पारवनाथके बान्धव प्रसिद्ध चन्द्रप्रभ थे बो कि एक पण्डितके गुरुये। (उत मितिको ) उसे यमराजके दूतोंकी तरफसे बुखार आ गया और अपनी जिन्दगीका अन्त करके नित्य सुखके स्थान ( अर्थात् स्वर्गको ) चला गया।] .
[EC, VIII, Sorab tl., No. 263 )