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[ निर्देश वहीं, परभव मग १०० ई. (ल. राइस)] [समछि (हदिवार प्रदेश) में, चाकेशपके मन्दिरकी दीवा-सम्मके आपर]
... ... ... अति पूजित-यति बर्द्धमान अपश्चिम-तीर्थनाथ ‘भमान्मना दिश... .. पततं.........
श्रीमदमिल-संघेऽस्मिन्नन्दिसंघेऽस्यहङ्गलः।
अन्वयो माति निस्शेष-शाल चाराशि-पागैः॥ (दूसरी तरफ़ )........... अजितसेन-देव-मुनिपो ह्याचार्यतां प्राप्तवान् । [इस लेखमें द्रमिलसंघान्तर्गत नन्दिसंघके अरुङ्गल अन्वयकी तारीफ है। इस अन्वयमें प्रायः सभी आचार्य या मुनि 'निश्शेष-शास्त्र-वाराशि-पारग थे।....... मनिवसेन-देव मुनिने आचार्य पदवी प्राप्त की।] जि
[EO, III, Nanjangud TI., No. 138. ]
सुनोगेरी-संस्कृत [विना कार-निर्देशका, पर संभवत: लगभग 1.ई.(१)] [हुमीगेरीपुर (रेगुन्डी तालुक) में, बसन मन्दिर के सामनेके स्तम्म पर)
श्रीम... .."सर्व ने .. सायया मतेय मण्डद्या... ...नित्य पूजाण आसीत् संयमिना पृथ्व्यां होमेनान्यन्महातपः ।
तच्छंशिना शील-स्तम्भो जिनचन्द्रेण निर्मितः ॥ [इस पृथ्वी पर पशु-यज्ञके सिवाय संयमीके द्वारा प्रत्येक महातप विद्यमान था; इसी बातको सर्वविदित करानेके लिये जिनचन्द्रने यह पाषाण-स्तम्भ खन किया था।]
[EC, III, Kandya., Ti., No. 34. ]