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बन्दूरके लेख ।
आतन सति बोकियक ॥ अवर सोदरळियन्दिर् हेगडे मादिराजनुं संकर-- सेटियां ॥ आ-बेल्लिय-दासि-सेटि दोरसमुद्रदल माडिसिद होयसळ-जिनालयक्के बिट्ट बन्दबुरदल्लि माडिराजनुं सङ्कर-सेट्टियं माडिसिद पार्च-देवर्मो बसदियं पुष्पसेन-देवाडिसिदरादेवरष्ट-विधार्चनेगं ऋषिगळाहारदानक्कं बीर्णोद्धारकवागि वासुपूज्य-सिद्धान्त-देवरु अवर शिष्य पुष्पसेन-देव माडिराजनुं संकर-सेट्टियं समस्त-प्रजे-गावुण्डुगळं सरागदिन्दा-चन्द्राक्कं नडेवन्तागि शक-वर्ष १०९० त्तोन्दनेय सधारि-स्वत्सरदुत्तरायण-संक्रमण-ग्रहण-व्यतीपातदन्दु धारा-पूर्वकं बिट्ट तळ-वृत्ति ॥ (आगे की ६ पंक्तियोंमें दानकी विशेष चर्चा है ) सुङ्कद हेगडेगळ बिट्ट नन्दा-दीविगेगे कै-गाण वोन्दु इन्तु वासुपूज्य-सिद्धान्त-देवतम्म शिष्य वृषभनाथ-पण्डितगिनितुवं धारा-पूर्व के कोट्टर ( वे ही अन्तिम वाक्यावयव और श्लोक)
विद्य-देव-शिष्यम् । देवार्चन-दान-धर्म-निरतं सततम् । देवव्रत-परिशुद्धम् । भू-विदितं पुष्पसेन मुनि-जन-विनुतम् ।।
[ सर्व प्रथम जिन शासनकी प्रशंसामें दो श्लोक है। पहलेकी ही तरह होयसल राजाओंकी उन्नतिका वर्णन । विष्णुके विषयमें कहा गया है,-मलेको अधीन करके क्या वह चुप रहा १ तळवन, काञ्चीपुर, कोयटूर, मलेनाड, तुळुनाड , नीलगिरि, कोळाळ, कोड, नाल, उच्चंगि, विराट्-राजा का नगर, वल्लर,-इन सबको अपने भुजाबलसे, लीलामात्रमें जीत लिया।
जिस समय ( अपनी सर्व उपाधियों सहित ), होय्सल बल्लाल-देव दोरसमुद्रमें निवास कर रहे थे:-उसके 'गुरुकुल' को परम्परा निम्नभांति थी:
द्रमिलसंघान्तर्गत नन्दिसंघमें एक अरुङ्गळ-अन्वय है, उसमें बड़े-बड़े शास्त्रपारग विद्वान् आचार्य हो गये हैं। वर्धमान स्वामीके तीर्थमें क्रमसे इन लोगोंके द्वारा धर्मतीर्थका विकास हुआ,-गणधर गौतम स्वामी, भद्रवाहु-भट्टारक, भूतबलि