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८०० मन्दिरों को जिनमें आनेसेज्जेयबसदि भी शामिल रहेगी, शर्तपर लगायें तो वह फिरसे वही चमत्कार' (fest) दिखलायेगा जिसे कि उसने अभी हीं दिखलाया था । इस दृश्यको देखनेकी इच्छासे बिजलने जैन मन्दिरोंके जितने विद्वान् थे उन सबको बुलाया और उसी शर्तनामकी शर्तको दुहरानेके लिए अपने तमाम मन्दिरोंको शर्तपर रख देनेके लिये कहा। जैनोंने यह कहते हुए कि वे अपनी शिकायतकी क्षतिकों मिटाने के लिये उसके पास आये हैं न कि उस क्षतिको और बढ़ाने के लिये, दूसरे बार की इस परीक्षाको माननेसे इन्कार कर दिया । इसपर बिजलने उनका उपहास किया और यह शिक्षा देते हुए कि इसके बाद तुम लोगोंको अपने पड़ोसियोंके साथ शान्तिसे रहना चाहिये, उन्हें बरखास्त कर दिया, और एकान्तद-रामय्य को खुली सभामें जयपत्र दिया । तथा, fae अद्वितीय साहससे एकान्तद- रामय्यने अपनी शिवभक्ति प्रकट की थी उससे प्रसन्न होकर, उसने उसकै पैर घोये और वीर-सोमनाथ के मन्दिरको गोगाव नामका गाँव, जो बनबासी १२००० में सत्तलिगे-सत्तरके मळुगुण्डके दक्षिणमें है, दानमें दिया ।
इसके बाद लेख कहता है कि जिस समय पच्छिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्त्य और उनके सेनापति ब्रह्म शेलेयहळ्ळियकोप्पमें थे, एक आमसभा की गई जिसमें पुराने और नये शैव-सन्तों के गुणका वाचन किया गया था । जत्र एकान्तद-रामय्यका किस्सा उससे कहा गया तो सोमेश्वर चतुर्थने एक पत्र लिखकर एकान्तद-रामय्यको अपने पास अपने राजमहलमें आनेके लिये कहा । वहाँ उसने उसके पैर धोये और उसी मन्दिरको स्वयं अब्लूर ग्राम ही भेंट किया । यह अब्लूर - ग्राम नागरखण्ड -सत्तर में है जो वनवासी बारह हजारमें है । और अन्तमें, महामण्डलेश्वर कामदेवने उस मन्दिरको बाकर देखा, सब कहानी सुनी,
१. यह चमत्कार और कुछ नहीं सिर्फ कटे हुए सिरको जोड़ देना है। एकान्तद-रामय्यने अपना सिर काट दिया था और फिर शिवको कृपाले उसे पुनः जोड़ दिया था ।