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बन्दलिकेके लेख
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४५८ वन्दलिक संस्कृत या काद [विना का निर्देशका, पर संभवतः लगभग १२०० ई.] [शान्तीरवर बस्तिके रमण्डपके दक्षिण-पश्चिम सम्मे पर] (पश्चिम-मुख ) स्वस्ति श्रीमतु अभयचन्द्र-सिद्धान्ति-देवगळ् शिष्यरु "कन अदर मुरारि देव-दान-प्रतिपालक-वंशोद्भवरु चारकीर्ति पण्डित-देवर हिरिय-महळिगेय पञ्च-बस्तिय जीर्णोद्धारव माडिदरु । आ-स्थानक्के अरसिन्दलु नाडिन्दलु बिडिसिकोण्ड वृत्ति आसाळुगुप्पेय बस्तिगे पूर्व तोडगि सन्दु बहुदु । बलेयगारु । बाळेयहळ्ळि । तगुडवतिगे यी-मूरु-ऊरु सर्वमान्य अरसियकेरेय केळगे ताळुगुप्पेय गऊडुगळ बिट्टदु ४ हाद। मुरवत्तूर गौडुगळु वीर गौण्डन केरेय केळगे बिटदु ४ हाद। विदळ २ सासव हेरुबडे १० येत्तु हदिनेण्टु कम्पण-दनु सलुऊदु । बत्तियकेरी सर्वमान्य । बलेयगारलि गुरुगळु बिट भूमि अखिय मूलस्थानके ४ हाद । हच्चड २० मान्य येत्तु हच्चड सर्वमान्य समेय-समुच्चयद भोगवटिगेय पञ्च-बस्ति यी-धर्मक्के ... ... रुदरखन हदिनेण्टु समेबवु कर्तरु ॥ श्री श्री
[स्वस्ति । मुरारि-देवके दानके प्रतिपालक वंशमें उत्पन्न, अभयचन्द्र-सिद्धान्ती देवके शिष्य चारुकीर्चि-पण्डित-देवने हिरिय-महलिगेकी पञ्च-बस्तिको सुधारा । रावा और नाड्से बो दान पहले ताळगुप्पेकी बस्तिके लिये मिला था, अर्थात् बलेयगारु, बळेयहल्लि और तगडुवनिगे, ये तीन गांव, सब करोंसे मुक्त, उस मन्दिरके लिये भी लागू हो सकते हैं । (उक्त) कुछ भूमि भी दानमें दी थी। इस गुणी कार्यके लिये १८ जातियां प्रबन्धक हैं । ]
[ EC, VII, Shikarpur, tl, No. 227. ]