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जैन-शिलालेख संग्रह
दचोऽयमक्षणदादि-पक्षमावीक्ष्य तत्क्षणे।
प्रत्यक्षादि-प्रमाणेन मे बालेन्दु-सन्मुनिः ।। वर्वतां बिन-शासनम् । श्री-पञ्च-परमेष्ठिगळे शरण। श्री-बालचन्द्र-पण्डितदेवाय नमः ॥
[बालचन्द्र-पण्डित-देव 'सारचतुष्टय तथा अन्य प्रन्योपर टीका बनाते है (या करते है)। नेमिचन्द्र-पण्डित-देव सुनते हैं ( ऊपर पाषाणके माथे पर लिखा हुआ)।
भी-मूलसंघ, देशिय-गण, पुस्तक-गच्छ, कौण्डकुन्दान्वय, इजलेश्वर-बलि, श्री-समुदायके माघनन्दि-भट्टारफ-देवके प्रिय शिष्य, नेमिचन्द्र भट्टारक-देव और अमयचन्द्र-सिदान्त-चक्रवर्ती उनके क्रमसे 'दीक्षागुरु' और 'श्रुतगुरू' थे,चान्य-पतिदेखने चतुर्वर्णों के सामने यह घोषणा की कि "(उक्त मितिको) मध्याह-कालमें मैं समाधि ( सोखना) ले लूंगा।" तदनुसार उनके समाधि मरण प्राप्त करनेके बाद दोरसमुद्रके भव्य लोगो (जैनों) ने उनके स्मारक के रूपमें उनकी (अपने गुरू की ) तथा पञ्च-परमेश्वरकी प्रतिमायें बनवाकर उनकी प्रतिष्ठा बी। इससे उनका गुण और कीर्ति खूब बढ़े।
१३२व लेखमें अभयचन्द्र-सिद्धान्त-चक्रवर्ती टीका करते हैं। बालचन्द्रपण्डित-देव सुनते हैं। इसमें बालचन्द्र-पण्डित-देव की प्रशंशा भरी हुई है। कामको भी उनकी सेवा करनेका आदेश इसमें दिया हुआ है। ]
[ Ec, V, Belur tl. No 131 and 132]
श्रवणवेल्गोला-काद। [वर्ष भाष= १२७४ ई० १ (ल. राइस.)
[जै० शि०सं०, प्र. भा०]