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जैन-शिलालेख-संग्रह
कलस-बद। [शक १००-१२७.ई.]
[दूसरे ताम्बेके शासमपर ] स्वस्ति श्रीमत्-पट्टद पिरिपरसि फळाळ-माहादेविया पृथ्वी-राज्यं गेयुत्तिरलु श-काल १२०० नेय ईश्वर-संवत्सरद वृश्चिक ३ मा १कळसनाथदेवरिगे बिनेश्वर-देवारगे मादेवसवागि कलसेट्टिय मादव दारेयनेरसिकोण्डा अकि मान २ नबन्तागि निमानिय मेगे कोडनिय नि ... क सहितौ गळ बिट्टि तेरुमा सलूब प १ दे आव त्यरूगडेयू अल अन्तप्पुद के साक्षि आ-मरसणिय नाळ कळसद हेवा वाळ ( औरों का नाम दिया है) कलसनाथदेवर अमृतर्याडगे अकि कुडते १ नील-कण्टकोबळ माकेयन कैयलि कोण्ड अलुगल-मकिय ... इलियहाळिय मेळे मुकिय तलेय गण्ण १ मेले न . अन्तप्पुदक्के साक्षि कळसद ग्राम आ-हेन्बारुवकळु।
[विस समय अभिषिक ज्येष्ठ रानी कलाल-महादेवी पृथ्वीका राज्य कर रही थीं :-( उक्त मितिको ) बर कि यह कलसनाथ और जिनेश्वर दोनोंका महान् दिन स, कलसेटिके पुत्र मादवने, सर्व करोसे मुक्त, दो 'मान' धान्य (चावल) देनेके लिये ( उक्त ) दान दिया। साक्षी। उन्हीं देवताके लिये एक और भी ( उक्त भूमिका दान । ]
[EC, VI, Mudgere tl., No. 67 1.]
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गिरनार-संस्कृत। [सं० १३३५ - १२७८ ई.]
श्वेताम्बर लेख । [ Revised Lists ant, rem, Bombay ( ASI, XVI ),
p. 362-358, No. 9 (II part ), t. and tr.]