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जैन-शिलालेख-संग्रह
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५२५ कडकोल;-काड़।
[शक १२०१=१२७१ ई.] किरकोळ गाँव के अन्दर हणमन्त या हनुमान मन्दिर के पास के
___ स्मारक पाषाण पर यह अभिलेख है] [१] स्वस्ति श्री स (श ) कवर्ष १२०१ प्रमाथि-संवत्स[२] रद भाद्रपद सु (शु)द्ध छ [८] टि सोमवारदन्दु श्रीम[३] न्-मूलसंघद पडुमसि (१ से) न-भट्टारकदेवर गु[४][] डि कडकोळद सावन्त सिरियम-गौडन हेण्डति [५] चण्डिगौडि सर्व-निवि ( वृ ) त्तियं कयि-कोण्डु स[६] माद्धि (धि ) यिं मुडिपि स्वर्गप्राप्तेयाद निषिद्धि ( घि) [७] य स्तम्भम् [ 1 ] मंगळ-महा-श्री-श्री-श्री [1] [८] हिर्य-चोप्पगोड चिक-बोप्पगोड चिक्कगोड [६] क (?) लिदेव रुषा ( ? ) घ ( १ ) धिरिदेव सुख्य हन्नेरडु-हि[१०] टु समस्त-प्रजे बसदिगे कोट्ट येरे मत्तरु १ । श्री[११] वान्य मङ्गल-महा-श्री-श्री-श्री [] 'अनुवाद-स्वस्ति ? पवित्र मूल मंघके पडुममेन-भट्टारकदेवकी गुड्डि (शिष्या या अनुयायिन ); ( तथा ) कडकोळके मावन्त सिरियमगौड की पत्नी चण्डिगौडिकी (स्मृतिका ) यह 'निषिधि'-स्तंभ है। उसने यह समाधि सर्व इन्द्रियों के विषयोंसे निवृत्त होकर तथा सर्व मांमारिक कार्यों का त्याग करके प्रमाथि संवत्सर-जो शक वर्ष १२०१ था-के भाद्रपट ( महीने ) के शुक्ल पक्षकी छठ, सोमवारको ली थी स्वर्ग प्राप्त किया था। मंगल और लक्ष्मी बढ़े १ १२ हिटठु तथा हिर्य-बोप्प गोड, चिक-बोप्पगोड चिकगौड, (१) ( कलिदेव, ( तथा ) रुवाघविरिदेक प्रमुख सब लोगोंने बसदिके लिये ? 'मत्तर' कालो-मिट्टो वाली भूमि दी। मंगलमहा-भी-श्री-श्री!
[ IA, XII, P. 100-101. No 2. T and Tr]
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