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गोगका लेख
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पाण पर
गोग्गा-कार-मग्न । [का लुप्त-पर लगभग १२०० ई.]
[वीरभद्र मन्दिरके पास के एक तीसरे पाषाण पर ] ( अग्रभाग घिसा हुआ है):"नेक-ऋषिय ... ... ... वैशाख सुद्ध ५ बृ... ... ... .."अदके सीप बडगल्... ... .''वण तुम्ब केळगे पडुवल्लु'.. ......... ... 'मत्तर १....."ब ५० अदके चतुस्सीमे नट्ट कलु... ... ... ब ५ देवर नन्दा-दिविगेगे गाण १ हत्तेत्तिन बकलु... ... ."हुडिके-देरे हडियदे ग असगर वोकलु १ यिन्तिनितुम सुङ्क...........विरुपय्यङ्गनु विट दत्ति समस्तप्रजेगळिई कोट्ट धान्यव ग नेख्नु को २ नवणे को २ एळु को १ यिन्तनितु धर्ममं श्रीमतु सोवल-देवियरु ई..... कन्यादान माडि वासुपूज्य देवर काल कञ्चि धारा-पूर्वक माडिदरु यिन्ती धर्ममं नाग-गौडन् । 'नय-प्रमेतेयागि प्रतिपाळिसुवरू। ( हमेशाके अन्तिम श्लोक)।
[(प्रथम अंश नष्ट हो गया है, और उसका अधिकांश मिट गया है) विरूपय्यके द्वारा भूमिका दान। वासुपूज्य-देवके पाद प्रक्षालन-पूर्वक सोवलदेबीके द्वारा ( उक्त ) अनेक तरहके घान्यका दान, तथा एक कुमारीकी भेंट । इस पुण्यकी रक्षा नाग-गौड, अपनी आँखको ज्योतिकी तरह, करेगा। हमेशाका अन्तिम श्लोक । [ EC, VII, Shikarpur tl., No 321 .]
४५६ गोग्गा काद-मग्न ।
[शक m २०८ ई.] [गोग्गमें, वीरभद्र मन्दिर के पास के पाषाण पर] ऊपरका भाग मिट गया है)... ... ....... अच्छरिये ......... .. बुद्धि