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हलेव डके लेख
धनुस-संक्रमणदल्नु आ-देवर सनिधियनु आ-कुमार-नारसिंह-देवरु तम्म श्रीहस्तदलु पुन-[]-धारेयनेरेदु कोहरु मङ्गल महा श्री भी श्री
[१२६ ] आनन्द-संवत्सरद फाल्गुन व २ बु । बन्दु श्रीमतु प्रताप-चक्रवत्तिकुमार-नारसिहदेवरसरु तवगे उपनयनवादल्लि बोप्प-देव-दण्णायकर बसदिय भी-विजय-पार्श्व-देवर श्री-कार्यके आ-चन्द्रार्क स्थायिागि नडवन्तागि हिरियकेरेय केळगे केम 'द साल-माविन गटिनोळगे कोळद-होनयन पट्टशालेगे कल्ल नटु बिट्ट भूमियिन्द मूडलु गद्दे गुम्मेश्वरद कोळगदानु गद्दे सलगे नाल्कुवम् धारा-पूर्वक माडि सर्व-बाधे परिहारवागि कोहरु ( परिचित अन्तिम श्लोक) मंगळ कहा श्री श्री श्री
[सलके वंशमें सोमेश हुआ। उसका पुत्र नारसिंह था। सोमेशकाः विजय-तीाधिनाथ ( दण्णायक ) बोपदेव था । ( उक्त दिन) प्रताप-चावति होयळ बीर-नारसिह देवरसने बोपदेव-दण्णायककी बसदिका निरीक्षणकर बसदिका. पूर्व 'शासन' देखा और अपनी वंशावली पढ़ी। उसने अपने साले या ीषा पझि-देवके द्वारा बनवायी गई चहार-दीवारी और एक मकानको, बो कि ध्वस्त हो गया था, सुधरवाकर धनुस-संक्रमणके समय में विषय-पार-देवकी सेवामें अर्पण कर दिया।
[१६] कुमार नारसिह देवरसने ( उक्त मितिको ) अपने 'उपनयन' संस्कारके समय ( उक्त ) कुछ दान दिये।
. [EC, V, Belur tl., No. 125 and 126.]