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जैन-शिलालेख-संग्रह
और आगे बताता है। यह कार्तवीर्य चतुर्थकी द्वितीय पत्नी होनी चाहिये, क्योंकि शि० ले० नं० ४४६ में उसकी पत्नीका नाम एचलदेवी दिया है। तत्पश्चात् हम देखते हैं कि सुगन्धवर्ति बारह का शासन लक्ष्मादेव चदर्थकी अधीनता में रट्टोंके राजगुरू मुनिचन्द्रदेवके द्वारा होता था, आर मुनिचन्द्रके सहायको या परामर्शदाताओं में शान्तिनाथ, नाग और मल्लिकार्जन थे। मल्लिकार्जुनकी वंशावलीके देनेमें स्थानीय दो महत्वशाली वंशोका विशेष वर्णन है-१८ गाँवोंके वृत्त ( समूह ) के अधिपति ( इन गांवों में बनिहट्टि मुख्य था जो आजकल बामखण्डीके पासका एक छोटा शहर मालूम पड़ता है), और कोलार के अधिपति ( आजकलका कोर्ति-कोल्हार जो कलाद्रीसे नातिदूर कृष्णाके किनारे है)। कोलारके वंशमें पुरुष-उत्तराधिकारीके न होनेसे वहाँका अधिपतित्व विवाहके द्वारा बनहट्टिके अधिपतियोंके वंशमें चला गया। कोलारके अधिपतियोंका वंश गृहपति वशिष्टके वंशसे शुरू होता है, और उसमें निम्न नामोंका वर्णन आया है :
मादिराज प्रथम ।
भूतनाथ
बिजियन्वे
मादिराब दि० .
गौरी मादिराब द्वि० अपने छोटे भाइयोंके साथ-बिनके नाम नहीं दिये हैंयुद्ध में मारा गया था। उसकी मृत्युके बाद उसकी बहिन बिजियव्वेने शासन-सूत्र अपने हाथमें ले लिया और कुछ समय बाद इसे बनिहटिके मल्लिकार्जुनके साथ गौरीके विवाहमें दहेजके रूप में दे दिया । बनिहट्रिके शासकोंके वंशका नाम 'सामासिग-वंश' था और यह अत्रि ऋषिसे प्रारम्भ होनेवाले इन्दुवंशकी एक