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जैन-शिलालेख-संग्रह
... ... .... .. भोच्चण्ड ... ... .बीरस्वळळाल... ... ... अरसंक-कर ....... ....... वोळगागनेक......... चटरस... ...
आ-दम्पतिगळ पुण्यदिन् । आदं मगनधिक.. ... ... । ...............) ... ... ..."विख्यात-सन्धि-विग्रहि यीच ॥ अभ्याहारादि-शास्त्र......। शुभ-चारित्र ङ्ग] हिन्दं पर-हित-गुणदिन्दं ब्रताचार दिन्दम् । शुभ..." "उर्वी-नुतं कीर्ति-कान्त-। प्रभु-मन्त्रोत्साह-शक्ति-त्रप-युतनधिक सेव्य...। पति-हिते सीतेयन्ते जिनपार्चकि तेवकियन्ते भतृ'-सम्युते गिरिचातेयन्ते... ..'लक्ष्मियन्ते सु-। बते नेगळद तिम्मवे....."न्विते वाणियन्ते तान् ।, अतिशयस इई.. ... ."अङ्गने सोवल-देवि धात्रियोळ् । .."सति पद्मसंभवनोळद्रिजे चन्द्र "नोळ् । परम सुख-प्रशस्ते सिरि विष्णुविनोळ नेलसिष्प माल्केयिं ॥ स्थिरतर..... ."सोचलदेषि मनोनुरागदि ।
निरुपम-सन्धि-विग्रहि-सिखाणियोचनोळी.... ...॥ [(लेखका प्रथम अंश नष्ट हो गया है, और उसका अधिकांश मिट गया है)।
ईच और उसकी पत्नी सोमल-देवीकी प्रशंसा। उनके गुरु-परम्परा (गुरुकुल ) की तारीफ-लेखमें सिर्फ चन्द्रप्रभाचार्यका नाम रह गया है।
महामण्डलेश्वर मलि-देवरस सन्धि-विग्रही मंत्री एचकी पत्नी सोक्ग-देवीने, अपने छोटे भाई ईचके मर जाने पर, एक बसदिका निर्माण किया, भगवान शान्तिनाथकी अष्टविध पूषनके लिये, और मन्दिरकी मरम्मतके लिये, ( उक्त मितिको ) चन्द्रग्रहणके समय, ( उक्त ) भूमिका दान किया।]
[ EC, VII, Shikarpur tl., No 320. )